घाटी में जान का खतरा कश्मीरी पंडित कर्मचारी ट्रांसफर पर अड़े

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    अपनी पुनर्वास नीति के तहत सरकार ने कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को घाटी में भेज तो दिया लेकिन वहां उनकी जान पर बन आई है. लगभग 4,000 कश्मीरी पंडित घाटी के विभिन्न विभागों में काम कर रहे हैं. आतंकियों ने टारगेट किलिंग करते हुए 7 से ज्यादा लोगों को अपना निशाना बनाया. एक शिक्षिका, एक बैंक कर्मचारी को उनके कार्यस्थल में जाकर गोली मारी गई. कश्मीरी पंडितों के अलावा अन्य राज्यों से आए मजदूरों की भी हत्या की गई.

    यद्यपि कश्मीरी पंडितों के परिवारों को सुरक्षा गेट वाली अलग कालोनी में रखा गया लेकिन ये कर्मचारी जब अपने काम पर जाते हैं तो रास्ते में या काम के ठिकाने पर कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं है. उन पर आतंकी कभी भी जानलेवा हमला कर सकते हैं, इसलिए उनका भय स्वाभाविक है. मुस्लिम बहुल घाटी में कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का प्रयास काफी जोखिम भरा है. अपनी जान का खतरा देखते हुए डोगरा और कश्मीरी पंडितों के दोनों समुदायों के कर्मचारियों ने जम्मू में फिर प्रदर्शन किया और शांति बहाल होने तक घाटी से बाहर तबादला किए जाने की मांग दोहराई.

    ‘आल माइग्रेंट एम्प्लाइज एसोसिएशन कश्मीर’ के बैनर तले सैकड़ों महिला व पुरुष कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया. वे हाथों में तख्तियां पकड़े हुए थे जिन पर लिखा था- ‘हमारे खून की कीमत पर हमारा पुनर्वास नहीं करें. हमारे बच्चे अनाथ हो रहे हैं, हमारी पत्नियां विधवा हो रही हैं. इसका सिर्फ एक ही समाधान, घाटी के बाहर स्थानांतरण.’

    कश्मीरी पंडित अपने को बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जान के खतरे की वजह से हम अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हैं. हम मौत के साए में हैं. हमारी जिंदगी दांव पर लगी है इसलिए सरकारी लॉलीपॉप के आगे नहीं झुकेंगे. स्थिति सामान्य होने तक हमें घाटी के बाहर कहीं भी स्थानांतरित कर दें.