अपने चहेतों के दिल में अमर रहेंगे कत्थक सम्राट बिरजू महाराज

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    कत्थक नृत्य कला को बुलंदी पर ले जाने वाले पं. बिरजू महाराज निधन के बाद भी अपने लाखों चहेतों के दिलों में अमिट स्मृतियों के रूप में अमर रहेंगे. उनकी नृत्य चपलता, भाव एवं मुखमुद्रा कौन भूल सकता है! उन्होंने सारे विश्व में अपनी कला का प्रदर्शन किया जहां उनको व्यापक सराहना मिली. वे कत्थक करते हुए अपनी भावभंगिमा व आंखों से नौ रस प्रस्तुत करते थे. बिरजू महाराज का असली नाम ब्रजमोहन मिश्रा था. कत्थक के कालका-बिंदादीन घराने में उनका जन्म हुआ था. 

    वे बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. सिर्फ 6 वर्ष की उम्र में उन्होंने रामपुर के नवाब के सामने मंच पर अपना गायन कौशल दिखाया था. महज 13 वर्ष की उम्र से वे गुरु के रूप में दूसरों को नृत्य की शिक्षा देने लगे थे. अपने पूर्वजों की कला को उन्होंने आत्मसात किया और साथ ही नए-नए प्रयोग भी किए. उनकी प्रेरणा से अनेक शिष्य भी तैयार हुए. नृत्य तो उन्हें विरासत में मिला ही था, साथ ही बिरजू महाराज ठुमरी भी बहुत अच्छी तरह हाव-भाव के साथ गाते थे. वे सिर्फ नृत्य गुरु ही नहीं थे, उन्होंने फिल्म देवदास, बाजीराव मस्तानी, उमरावजान और डेढ़ इश्किया जैसी फिल्मों का नृत्य निर्देशन भी किया था. 

    देवदास में ‘काहे छेड़े मोहे नंद के लाल’, बाजीराव मस्तानी का मोहे रंग दो लाल जैसे गीत उनके निर्देशन की वजह से ही इतने अच्छे बन पड़े थे. उन्होंने माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय और दीपिका पादुकोण जैसी बड़ी अभिनेत्रियों को नृत्य के गुर सिखाए थे. बिरजू महाराज और   बिरजू महाराज ने सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी के लिए ‘कान्हा मैं तोसे हारी’ शीर्षक भैरवी गाई थी. फिल्म विश्वरूपम के नृत्य निर्देशन के लिए उन्होंने नेशनल अवार्ड जीता था. बिरजू महाराज को सरोद और वायलिन बजाने का शौक था. उन्होंने बिस्मिल्ला खां, उस्ताद अमीर खां और पं. भीमसेन जोशी के साथ जुगलबंदी की थी. उनके न रहने से कला व संगीत की दुनिया सूनी हो गई.