उसूलों को ताक पर रखकर वृद्ध श्रीधरन को उम्मीदवारी

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    यह नियम स्वयं बीजेपी ने बनाया था कि 75 पार उम्र वालों को चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा. इसी के चलते पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) और मुरलीमनोहर जोशी (Murli Manohar Joshi) को 2014 व 2019 के चुनाव में उम्मीदवारी नहीं दी गई. उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डालकर सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया गया. आनंदीबेन पटेल भी गुजरात की सीएम पद से हटने के बाद मध्यप्रदेश की राज्यपाल बना दी गई थीं. एक तरह से यह नियम पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को विश्राम देने के लिए था.

    इससे पार्टी की दूसरी व तीसरी पीढ़ी के नेताओं को आगे आने का मौका मिल सकता था. इसलिए इसकी उपयोगिता थी. बढ़ती उम्र किसी को नहीं बख्शती. शरीर की टूटी कोशिकाएं (सेल्स) फिर से बनने की रफ्तार कम हो जाती है. हड्डियों का घनत्व (बोन डेन्सिटी) घट जाता है. पहले जैसी चुस्ती नहीं रहती. याददाश्त कम होने या स्मृतिभ्रंश के लक्षण नजर आते हैं. यही सब देखते हुए सरकारी नौकरियों में 58 या 60 की उम्र में रिटायर कर दिया जाता है. फौज में तो 35 साल का जवान रिटायर हो जाता है. इसके विपरीत राजनीति में 60 वर्ष की उम्र के बाद ही नेताओं को सफलता की उम्मीद रहती है. बीजेपी के नियमों के विपरीत अभी 77 वर्ष के येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं. चूंकि वहां की राजनीति में उनका कोई विकल्प नहीं है इसलिए उन्हें सीएम पद पर रखना अपरिहार्य है.

    अत्यंत आश्चर्य की बात है कि अपने ही नियम को रौंदते हुए बीजेपी ने मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई धीरन (E Sreedharan) को केरल के पलक्कड़ से अपना उम्मीदवार बनाया है. 89 वर्षीय इंजीनियर श्रीधरन को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. यह उनका क्षेत्र नहीं है. दिल्ली मेट्रो तथा कोंकण रेलवे के निर्माण में उनकी विशिष्ट भूमिका थी. उन्हें इस उम्र में चुनाव में उतारने का फैसला काफी अटपटा है. पार्टी उनके नाम का राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है. राजनीति में स्वच्छ या बेदाग होना सफलता की गारंटी नहीं होता. इतिहास गवाह है कि देश के मुख्य् चुनाव आयुक्त रह चुके टीएन शेषन जब खुद चुनाव में उतरे तो उनकी जमानत जब्त हो गई थी. श्रीधरन को बीजेपी भावी सीएम के तौर पर पेश कर रही है. देखना होगा, क्या होता है.