राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने आवाजी मतदान (वॉइस वोट) से मतदान पर आपत्ति दर्शाई और इसे असंवैधानिक बताते हुए राज्य सरकार को पत्र लिखा.
महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष पद 10 माह से रिक्त है. तब से 3 अधिवेशन बिना अध्यक्ष ही संपन्न कराए गए. यह पद नाना पटोले के इस्तीफा देने के बाद से खाली पड़ा है. आघाड़ी सरकार ने इस सत्र में अध्यक्ष का चुनाव करने की ठानी लेकिन बहुमत के बावजूद उसे गुप्त मतदान पद्धति में पराजय का खतरा नजर आया तो उसने नियम बदले और आवाजी मतदान कराने का इरादा किया. राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने आवाजी मतदान (वॉइस वोट) से मतदान पर आपत्ति दर्शाई और इसे असंवैधानिक बताते हुए राज्य सरकार को पत्र लिखा.
पहले तो राज्यपाल की भूमिका के खिलाफ जाकर ध्वनिमत से चुनाव कराने पर कांग्रेस नेता अड़े हुए थे लेकिन फिर महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होने के डर से सरकार ने अध्यक्ष के चुनाव को फिलहाल टाल दिया. अनुभवी नेता व आघाड़ी सरकार के किंगमेकर शरद पवार ने मौके की नजाकत देखते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फोन कर राज्यपाल पद का सम्मान करते हुए इस चुनाव को न कराने की सलाह दी. जिस पर अमल करते हुए चुनाव रोक दिया गया.
पवार ने चेताया कि यदि विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव बिना राज्यपाल की अनुमति के कराया गया तो संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है. ऐसे में इस फैसले को असंवैधानिक बताकर केंद्र की मोदी सरकार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश का मौका मिल सकता है. इस मुद्दे को लेकर राज्यपाल के साथ हठ करना ठीक नहीं है. इसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई और चुनाव रद्द करने का निर्णय लिया. इस तरह राज्यपाल की गुगली के सामने सरकार पस्त हो गई. इसके पहले राज्य सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए राज्यपाल से अनुमति मांगी थी.
राज्यपाल ने 10 दिन की चुनाव प्रक्रिया को सिर्फ 1 दिन करने और ध्वनिमत से चुनाव कराने पर आपत्ति जताई थी. इस पर मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा था कि वे सरकार और विधान मंडल के कामकाज में हस्तक्षेप न करें. राज्यपाल ने इसका उत्तर देते हुए फिर सरकार को खरी-खरी सुना दी. अब अध्यक्ष पद के चुनाव का मुद्दा अगले वर्ष फरवरी में नागपुर में होने वाले बजट सत्र के लिए छोड़ दिया गया है.