
महाराष्ट्र विधानमंडल का मानसून सत्र सिर्फ 2 दिन का रखकर रस्म निभाई या औपचारिकता का निर्वाह किया जा रहा है. इतने अति संक्षिप्त सत्र से कौन सा प्रयोजन पूरा होगा? राज्य के सम्मुख जो भी ज्वलंत प्रश्न, विषय व समस्याएं हैं, उन पर 2 दिनों के भीतर चर्चा, बहस या विचार विमर्श संभव नहीं है. न तो इतने मुद्दे उठ पाएंगे और न उन पर बोलने का सदस्यों को मौका मिल पाएगा? मानसून सत्र संक्षिप्त रखा गया है जिसकी शुरुआत 5 जुलाई को होगी और सजावसान 6 जुलाई को हो जाएगा. यह फैसला विधानमंडल कामकाज सलाहकार समिति की बैठक में लिया गया.
विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की मांग थी कि मराठा आरक्षण, ओबीसी और राज्य के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए कम से कम 15 दिनों का सत्र रखना चाहिए था. उन्होंने कहा कि कोरोना संकट को ढाल बनाकर सरकार जनसरोकार के मुद्दों से भाग रही है. सरकार की नाकामी के कारण ही मराठा और ओबीसी आरक्षण रद्द हुआ है. महाविकास आघाड़ी सरकार सदन में किसानों की समस्या, विद्यार्थियों के प्रश्न, बिजली आपूर्ति संकट और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है. विधान परिषद में बीजेपी समर्थित सदस्य विनायक मेटे ने आरोप लगाया कि सरकार मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सदन में चर्चा कराने के लिए तैयार नहीं है.
कामकाज सलाहकार समिति की बैठक में विपक्ष के सदस्य सत्र का अवधि सिर्फ 2 दिन रखने को लेकर सरकार पर जमकर बरसे जबकि सत्ताधारी पार्टियों के सदस्य मौन साधे रहे. विधानमंडलीय कार्य मंत्री अनिल परब ने कहा कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. कोरोना वायरस के नए-नए स्ट्रेन मिल रहे हैं. इस लिहाज से 2 दिन का सत्र रखागया है ताकि संक्रमण न बढ़े. अधिवेशन में होने वाले कामकाज की जानकारी सत्र शुरु होने से पहले कामकाज पत्रिका में दी जाएगी.