Maratha reservation

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    महाराष्ट्र की राजनीति में अत्यंत मजबूत स्थिति रखने के बावजूद स्वयं को सामाजिक व शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बताते हुए मराठा अपने लिए शिक्षा व सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग करते आए हैं. उन्होंने इसके पहले भी अपने बड़े-बड़े शांतिपूर्ण मोर्चे निकालकर अपनी जबरदस्त एकता सिद्ध की थी. जब मुद्दा मराठा आरक्षण का आता है तो उनके नेता दलगत मतभेद परे रख देते हैं क्योंकि यह मसला एक बड़े समुदाय के मतदाताओं की भावना से जुड़ा है. पिछली युति सरकार ने बगैर पर्याप्त तैयारी के मराठा आरक्षण की घोषणा कर दी थी, जिस वजह से यह आरक्षण संवैधानिक कसौटी पर टिक नहीं पाया और गत 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.

    मराठा समुदाय की जनगणना तथा सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन व उनकी बेरोजगारी के आंकड़े पेश कर पाने में सरकार विफल रही. यद्यपि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती लेकिन नेता झूठे आश्वासनों की जलेबी खिलाने में पीछे नहीं रहते. वे पुनर्विचार याचिका दायर करने तथा आरक्षण दिलवाने के लिए अन्य संवैधानिक विकल्प की दिशा में आगे बढ़ने का सब्जबाग दिखाते हैं. मराठा समाज इन नेताओं से उम्मीद लगाए हुए है. मराठा संगठनों ने घोषणा की थी कि वे कोल्हापुर, नाशिक, अमरावती व औरंगाबाद में मूक मार्च करेंगे जिनमें से प्रथम दो पूरे हो गए हैं. अब बीजेपी के राज्यसभा सदस्य संभाजी राजे भोसले ने एलान किया कि नाशिक की पवित्र भूमि में आंदोलन से माहौल खराब नहीं होने देंगे और मूक मार्च को 1 माह स्थगित रखेंगे.

    राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार को इन मांगों के लिए पूरा वक्त देने के लिए यह फैसला किया गया है. राज्य सरकार ने हमारी ज्यादातर मांगें पूरी कर दी हैं. शेष मांगों को पूरा करने के लिए 21 दिन मांगे गए थे, अत: आंदोलन 1 माह के लिए टाल दिया गया. संभाजी राजे ने कहा कि मराठा आरक्षण के लिए पुनर्विचार याचिका पहला मार्ग है. संविधान के अनुच्छेद 342 (अ) के माध्यम से राष्ट्रपति भी आरक्षण दे सकते हैं. पुनर्विचार याचिका के लिए पर्याप्त तैयारी के साथ तथ्य, आंकड़े और सार्थक विवरण जुटाने की आवश्यकता है. इसके बगैर सुप्रीम कोर्ट इस पर गौर नहीं करेगा.