महाराष्ट्र में सर्वाधिक कुपोषण, नेता-अफसर मस्त, बच्चे भूख से ग्रस्त

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    अत्यंत शर्म की बात है कि देश के अत्यंत कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं. महाराष्ट्र की भारत के प्रगतिशील औद्योगिक व संपन्न राज्यों में गणना होती है लेकिन यहां लाखों बच्चों का कुपोषित रहना दीया तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करता है. एक ओर नेता और अफसर अपने ऐशो आराम में मस्त हैं तो दूसरी ओर बच्चे भूख से त्रस्त हैं. भारत कोई गरीब देश नहीं हैँ बल्कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य लेकर तेजी से आगे बढ़नेवाला देश है. 

    चंद्रमा और मंगल पर यान भेजने, उपग्रह प्रक्षेपण में आगे रहने वाले देश की जमीन पर लाखों बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं. देश में कई दशकों तक समाजवाद का नारा लगाया गया लेकिन समाजवाद कभी जमीन पर नहीं उतरा. सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बताया कि देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से 17,76,902 बच्चे अत्यंत कुपोषित तथा 15,46,420 बच्चे अल्पकुपोषित हैं. 

    नवंबर 2020 से 14 अक्टूबर 2021 के बीच गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की तादाद में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई जब खाने को ही नहीं मिलेगा तो कुपोषण होगा ही. वह कुपोषण निश्चित रूप से पर्याप्त भोजन देकर ही दूर किया जा सकता है, सिर्फ दिखावे के लिए विटामिन और आयरन की टैबलेट बांटने से नहीं. महाराष्ट्र के मेलघाट, गड़चिरोली, नंदूरबार और पालघर में सर्वाधिक कुपोषण के मामले हैं. वहां बाल मृत्यु दर भी अधिक है. इन आदिवासी क्षेत्रों में माता-पिता मेहनत मजदूरी करने चले जाते हैं और घर में बच्चे व बूढ़े रह जाते हैं. 

    बरसात के मौसम में यहां के गांवों से संपर्क कट जाता है. स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं के बराबर हैं. आंगनवाडी कार्यकर्ताओं के जरिए कुपोषण की समस्या हल की जा सकती है. आदिवासियों को पालक, टमाटर उगाने तथा मुर्गी पालन के लिए प्रवृत्त किया जा सकता है. समाज कल्याण योजनाओं तथा मुफ्त अनाज वितरण से भी भूख और अभाव की समस्याओं का निदान हो सकता है. जिन जिलों में कुपोषण की समस्या है, वहां सरकारी मशीनरी को चुस्त कर इस संकट से निपटा जा सकता है. स्वयंसेवी संगठनों की भी इसमें मदद ली जा सकती है.