नवी मुंबई में पहले से ही असम भवन है फिर एक और भवन क्यों

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    सत्ता हासिल करने का यह मतलब नहीं है कि मनमाने फैसले किए जाएं और जनता के दिए हुए टैक्स से बने सरकारी खजाने को व्यर्थ ही लुटाया जाए. इस रकम का जनहित में विवेकपूर्ण उपयोग होना चाहिए. राज्य के मुख्यमंत्री को फैसला करना चाहिए कि कौन सी बात जरूरी है और कौन सी जरूरी नहीं तथा सरकार की प्राथमिकता क्या होना चाहिए. महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अनुरोध पर नवी मुंबई में असम भवन के निर्माण को अनुमति दे दी है. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राऊत ने इस पर कहा कि असम भवन पहले से नयी मुंबई में स्थित है.

    जब पहले से ही इसकी मौजूदगी है तो फिर एक और भवन बनाने में कौन सा तुक है? हर राज्य देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भूमि चाहता है पर महाराष्ट्र के लिए अन्य राज्यों में जगह नहीं है. शिंदे और सरमा की निकटता को लेकर संजय राऊत ने कहा कि असम के मुख्यमंत्री पूर्व कांग्रेसी है जबकि शिंदे पूर्व शिवसैनिक हैं लेकिन पाला बदलने के बाद दोनों मुख्यमंत्री बन गए इसलिए दोनों में अच्छा तालमेल है. देखा जाए तो अन्य प्रदेशों की तुलना में मुंबई में जमीन काफी महंगी है.

    उसे किसी को दरियादिली से देने का कोई औचित्य नहीं हैं. शिंदे इसलिए हिमंत बिस्वा सरमा का उपकार मान रहे हैं क्योंकि शिवसेना के बागी विधायक के साथ वह असम में 11 दिनों तक ठहरे थे. आपरेशन लोटस के तहत इन विधायकों को पहले महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्य गुजरात और फिर वहां से पूर्वोत्तर के राज्य असम ले जाया गया था. दूर के राज्य में रखा जाए तो कोई विधायक छिटक नहीं सकता. यह रणनीति बीजेपी का ऐसा सोचा-समझा मास्टर प्लान था जिसमें विधायकों को बीजेपी शासित राज्यों में ले जाकर ठहराया गया ताकि उनमें से कोई भी अपना कदम पीछे न हटा सके.

    इतने विधायक कैसे तत्कालीन सरकार की नजर बचाकर मुंबई से बाहर चले गए, यह भी एक रहस्य है. इस प्रकरण में देवेंद्र फडणवीस और अमित शाह ने अपना कौशल दिखाया. एकनाथ शिंदे की असम के सीएम से घनिष्ठता बढ़ना स्वाभाविक है जो कि असम में उनके मेजबान थे. यह सारी बाते अपनी जगह हैं लेकिन जब पहले ही नवी मुंबई में असम भवन का अस्तित्व है तो ऐसा ही एक और भवन बनाने की अनुमति देने की बात किसी के गले नहीं उतरेगी.