नए भारत की उड़ान, एक बार फिर से बेटियां टॉप पर

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    जब तक दकियानूसी सामाजिक व्यवस्था की जकड़न में लड़कियों को अवांछित दबाव में रखा जाता था, उनकी विद्या, बुद्धि, प्रतिभा खुलकर सामने नहीं आ पाती थी. अब उन्हें उड़ान भरने के लिए खुला आकाश उपलब्ध है, साथ ही आत्मविश्वास और हौसला भी जाग उठा है कि वे पुरुषों के मुकाबले किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं और अपनी मेहनत से ऊंचा मुकाम हासिल कर सकती हैं. 

    संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में टॉप 3 स्थान बेटियों को ही मिले हैं. समूचे देश में सबसे पहली रैंक श्रुति शर्मा को मिली है, दूसरे क्रमांक पर अंकिता अग्रवाल तथा तीसरे पर गामिनी सिंगला हैं. टॉप-10 में 5 लड़कियां हैं. गत वर्ष भी ऐसा ही हुआ था कि 10 टॉपर्स में से 5 बेटियां ही थीं. महाराष्ट्र से प्रियंवदा म्हाडदलकर प्रथम व अंजलि क्षोत्रीय दूसरे क्रमांक पर रहीं. 

    यह है हमारे भारत के प्रशासनिक ढांचे की उजली तस्वीर जिसमें यह महिला शक्ति कलेक्टर, कमिश्नर, सेक्रेटरी बनेंगी. आने वाले वर्षों में वे अपने कृतित्व की उज्ज्वल और प्रभावशाली छाप छोड़ेंगी. सामाजिक ढांचे में ऐसा बदलाव आना शुभ संकेत है. महिलाओं की दुनिया सिर्फ किचन, घर की चारदीवारी तथा बच्चों के जन्म व परवरिश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी उनका सार्थक योगदान है. 

    निश्चित रूप से लड़कियां पूरे आत्मविश्वास से पढ़ाई कर रही हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कीर्ति का ध्वज फहरा रही हैं. स्वाभाविक रूप से माता-पिता को अपनी बेटी की उपलब्धि पर नाज होगा जिसने अत्यंत कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच आईएएस बनने का सपना साकार किया. अब वह समय नहीं रहा कि लड़कियां सिर्फ शिक्षिका, रिसेप्शनिस्ट, टेलीफोन ऑपरेटर बनकर रह जाएं. 

    आज वे प्रशासक, पायलट, वकील, जज, डाक्टर, उद्योजक की भूमिका में देखी जा रही हैं. अपनी प्रतिभा, लगन, कड़ी मेहनत और अटूट आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने खुद को सिद्ध कर दिखाया है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में पहली बार भारतीय महिला गीतांजलिश्री को उनकी हिंदी कृति ‘रेत समाधि’ के लिए बुकर प्राइज मिला.