मुल्क चलने को पैसे नहीं,पहले ही इंटरनेशनल भिखारी है पाकिस्तान

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    पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी मजबूरी का रोना रोते हुए स्वीकार किया कि उनके कार्यकाल में पाकिस्तान के हालात बेहद खराब हुए हैं. सरकार के पास देश चलाने और लोगों की भलाई करने के लिए पैसा नहीं है, इसलिए दूसरे देशों से लोन लेना पड़ता है. पाकिस्तान पर बढ़ता विदेशी कर्ज और टैक्स में कमी राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है. इमरान ने ऐसी दुर्दशा के लिए 2009 से 2015 तक की पिछली 2 सरकारों पर ठीकरा फोड़ा लेकिन सवाल उठता है कि उन्होंने पिछले 3 वर्षों में कौन सा तीर मारा. पाकिस्तान न केवल कंगाल बल्कि निकम्मा मुल्क है.

    1947 में आजादी मिलने के बाद से उसने उद्योग धंधे का विकास नहीं किया और अमेरिका से मिलने वाली खैरात पर पलता रहा. पाकिस्तान के शाशकों को मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई. शीत युद्ध के दौर में अमेरिका मानता था कि सोवियत रूस के खिलाफ पाकिस्तान उसकी चौकी है. अमेरिका जो भी सहायता देता था, उससे पाकिस्तान अपनी फौजी ताकत बढ़ाता था. वह रक्षा बजट में भारत से होड़ लेने में लगा रहता था. खुद प्रोडक्शन करने की बजाय पाकिस्तान इम्पोर्टेड चीजों के भरोसे रहता था.

    उद्योग न होने से युवाओं को रोजगार देना संभव नहीं था, इसलिए उसने अशिक्षित युवाओं को आतंकवादी बनाना शुरू किया. आतंकवाद ही पाकिस्तान का सबसे फलता-फूलता उद्योग है. पाकिस्तान में आज भी खेती पर बड़े जमींदारों का कब्जा है. किसान गुलामों की तरह उनके खेतों में काम करते हैं. उनसे बेगार ली जाती है.

    पाकिस्तान के बारे में कहा जाता था कि उसे अल्लाह, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं. ट्रम्प के शासन काल में अमेरिका ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी. ट्रम्प ने कहा कि हमने आतंकवाद से लड़ने के लिए पाकिस्तान को अरबों डालर की मदद की लेकिन उसने हमें बेवकूफ बनाया. जब अमेरिकी सहायता बंद हुई तो पाकिस्तान जाकर चीन की गोद में बैठ गया. सऊदी अरब की जी हुजूरी तो वह करता ही रहता है. तुर्की भी उसका हमदर्द है. पाकिस्तान की नियति ही दूसरे मुल्कों के सामने कटोरा फैलाने की है.