अभी PM जाकर आए हैं, सीमा पर नेपाल ने फिर आंख तरेरी

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    नेपाल और भारत के बीच कभी कोई दूरी नहीं रही. इतने पर भी नेपाल के नेता जिस प्रकार का विचित्र व्यवहार करते हैं, उसे देखकर हैरत होती है. इससे यही लगता है कि नेपाल, चीन के इशारे पर भारत से सीमा विवाद बढ़ाना चाहता है. नेपाल के प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा ने लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी पर अपने देश का दावा जताया है. 

    ये इलाके भारतीय सीमा के भीतर हैं और इतने दशकों में कभी यह मुद्दा नहीं उठा था लेकिन इन तीनों क्षेत्रों को लेकर विवाद को जन्म नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दिया था. ओली के कार्यकाल में भारत और नेपाल के रिश्ते काफी नाजुक मोड़ पर पहुंच गए थे. भारत न तो किसी की जमीन पर जबरन अपना हक जताता है, न किसी को यह इजाजत देता है कि वह हमारी जमीन पर अपना कब्जा कर ले. स्वयं नेपाल में मधेशी लोगों में वहां की सरकार को लेकर काफी असंतोष रहा है. 

    नेपाल को भारत हमेशा भरपूर सहायता देता आया है. 2015 में भीषण भूकंप के समय भी नेपाल को भारत ने मानवीय आधार पर मदद की थी. जब लगभग 70 वर्ष पूर्व नेपाल में राणाशाही के अत्याचार बढ़े थे तो वहां के लोकतंत्रशाही नेताओं को भारत ने ही अपने यहां शरण दी थी. नेपाल की विविध परियोजनाओं को भारत का सहयोग प्राप्त है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल गए थे और वहां सीता जन्मस्थली के विकास व पर्यटन बढ़ाने पर बात हुई थी. नेपाल पर चीन का दबाव बना हुआ है.

    वहां की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केपी शर्मा ओली व पुष्पकमल दहल प्रचंड चीन के प्रभाव में हैं. गत 20 मई 2020 को नेपाल मंत्रिमंडल ने नए नक्शे को पेश किया जिसे वहां की संसद ने मंजूरी दे दी. इस मानचित्र में भारत के कालापानी, लिंपियाधुरा व लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है. देउबा ने कहा कि सीमा का मुद्दा संवेदनशील है जिसे कूटनीतिक तरीके से बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है. दूसरी ओर जमीनी हकीकत बदलने का नेपाल का प्रयास भारत कभी सफल नहीं होने देगा.