अपराधियों को उम्मीदवारी सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों पर दिखाई सख्ती

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    किसी भी तरह से चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियां बाहुबली दबंगों या आपराधिक तत्वों को बेहिचक उम्मीदवार बनाती आई हैं. ये पार्टियां उम्मीदवार का चाल-चलन या चरित्र नहीं, बल्कि क्षेत्र में उसके दबदबे, आतंक और जीतने की क्षमता देखकर उसे टिकट देती हैं. यदि कोई जनसेवी सच्चरित्र व्यक्ति चुनाव जीतने की कूवत नहीं रखता तो पार्टी की नजरों में वह किसी काम का नहीं है. अधिक से अधिक सीटें जीतकर बहुमत हासिल करने की इच्छा रखने के लिहाज से पार्टियां उम्मीदवार के आपराधिक बैकग्राउंड की जानबूझकर अनदेखी कर देती हैं. राजनीतिक दल मानते हैं कि युद्ध और प्रेम के अलावा चुनाव में भी सब कुछ जायज है. इसका नतीजा यह है कि मौजूदा तथा पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में 2 वर्ष से भी कम समय में 17 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.

    अब सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति और चुनाव में अपराधीकरण को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए बीजेपी और कांग्रेस सहित बिहार की 9 पार्टियों पर जुर्माना ठोंक दिया. एनसीपी और सीपीएम पर 5-5 लाख रुपए तथा कांग्रेस और बीजेपी पर 1-1 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया. राजद, लोजपा, सीपीआई व राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पर भी 1-1 लाख का जुर्माना किया गया तथा बसपा को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इन पार्टियों को अवमानना का दोषी ठहराया व कहा कि इन दलों ने बिहार के चुनाव में उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास सार्वजनिक करने के आदेश का पालन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों के अपराध छिपाने पर नाराजगी जताई और दिशा-निर्देश जारी किए.

    इसके मुताबिक राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट के होम पेज पर प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रकाशित करनी होगी और मुखपृष्ठ पर शीर्षक देना होगा जिसमें लिखा हो- ‘आपराधिक पृष्ठ वाले उम्मीदवार!’ सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी निर्देश दिया कि वह मोबाइल एप्लीकेशन बनाए जिसमें उम्मीदवारों के आपराधिक बैकग्राउंड के बारे में प्रकाशित जानकारी शामिल हो. चुनाव आयोग सोशल मीडिया, वेबसाइट, टीवी विज्ञापनों, पैम्फलेट से उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान चलाए. चुनाव आयोग एक प्रकोष्ठ भी बनाए जो निगरानी रखे कि राजनीतिक दलों ने आदेशों का पालन किया या नहीं. जो पार्टी अनुपालन न करे, उसकी जानकारी चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट को दे.