बिहार का मूड जानने प्रशांत किशोर करेंगे लंबी पदयात्रा

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    विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए पेशेवर विशेषज्ञ के तौर पर चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर अब विकास और बदलाव जैसे मुद्दे पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. क्या उनकी दिशा बदल गई है अथवा वे परिवर्तन के जरिए एक नया इंकलाब लाना चाहते हैं? पीके ने कहा कि लालू और नीतीश के 30 वर्षों के राज के बाद भी बिहार देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग समेत कई मानकों पर आज भी देश के सबसे निचले पायदान पर है.

    आने वाले समय में यदि बिहार अग्रणी राज्यों की सूची में आना चाहता है तो  उसके लिए नई सोच और नए प्रयासों की जरूरत पड़ेगी. इसके लिए बिहार के हर नागरिक को आगे आना होगा. उन्होंने घोषणा की कि अगले 3-4 महीनों में 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे जिसकी शुरुआत चंपारण से होगी. वे इस यात्रा के दौरान करीब 17,000 लोगों से बात करेंगे. प्रशांत किशोर के पहले भी कितने ही नेता पदयात्रा कर चुके हैं. महात्मा गांधी ने भी चंपारण सत्याग्रह से अपने आंदोलन की शुरुआत की थी. आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन का लक्ष्य लेकर समूचे देश में पदयात्रा की थी.

    जहां तक बिहार का संदर्भ है, वहां की बड़ी समस्या अशिक्षा, गरीबी, जातिवाद और पिछड़ापन है. आजादी के 75 वर्षों में भी वहां विकास नहीं हो पाया. बाढ़ से हर वर्ष कितनी ही बस्तियां व खेती उजड़ जाती है. उद्योगधंधे नहीं होने से लोग रोजगार के लिए बाहरी राज्यों में जाने को मजबूर होते हैं. बिहार में अपराध का मूल कारण गरीबी और बेरोजगारी है.

    राज्य में माफिया और अपराधी गिरोह सक्रिय हैं, इसलिए उद्योग लगाने कोई आगे नहीं आता. जो प्रतिभाशाली युवक पढ़ाई में दिलचस्पी लेते हैं, वे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होकर दिखाते हैं. अधिकांश आईएएस व आईपीएस अधिकारी मूलत: बिहार के हैं. बिहार ने देश को डा. राजेंद्रप्रसाद, जयप्रकाश नारायण, जगजीवन राम जैसे कितने ही मूर्धन्य नेता दिए हैं. इस राज्य की समस्याओं को लेकर प्रशांत किशोर चिंतित हैं किंतु ये ऐसी दिक्कतें हैं, जिनका समाधान आसान नहीं है. (एजेंसी)