फर्जी डिग्री का मामला UP के डिप्टी CM मौर्य मुश्किल में

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    नेतागीरी करने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है. नेता को सिर्फ जनता को बहलाने-फुसलाने का हथकंडा और हवा-हवाई वादे करके वोट लेने की चालाकी आनी चाहिए. कितने ही नेता ऐसे रहते हैं जिन्हें विधायक-सांसद बनने पर भी सदन में पेश किए जाने वाले विधेयकों की खास जानकारी या समझ नहीं होती. इतने पर भी वे पार्टी की लाइन के मुताबिक उसका समर्थन या विरोध करते हैं. बिल में क्या है, यह उन्हें पता नहीं होता.

    सरकार के निर्देश पर विधेयक की ड्राफ्टिंग अनुभवी नौकरशाह करते हैं. वह जमाना गया जब सिर्फ वकील-बैरिस्टर तथा अध्ययनशील लोग राजनीति में सक्रिय रहा करते थे. उस वक्त सदन में बिल की एक-एक धारा को लेकर बहस हुआ करती थी. अब तो ऐसे लोग भी मंत्री बन गए हैं जिनकी शैक्षणिक योग्यता संदेह के घेरे में है. प्रयागराज की अदालत ने यूपी के उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के खिलाफ कथित फर्जी डिग्री के आरोपों की प्रारंभिक जांच का आदेश दिया है.

    अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने पुलिस को तहकीकात का आदेश दिया है जिसमें पूछा गया है कि क्या हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा डिप्टी सीएम को जारी मध्यमा द्वितीय वर्ष की डिग्री प्रमाणिक है? जांच का दूसरा मुद्दा यह है कि क्या आरोपों के मुताबिक कथित फर्जी प्रमाणपत्रों का चुनावी शपथपत्रों में इस्तेमाल किया गया था? इसके साथ ही अदालत ने उपमुख्यमंत्री मौर्य पर पेट्रोल पंप हासिल करने के लिए हाईस्कूल के फर्जी प्रमाणपत्र के इस्तेमाल के आरोप की भी जांच का आदेश दिया है.

    मौर्य पर आरोप है कि उन्होंने इंडियन ऑइल का एक पेट्रोल पंप कथित रूप से फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर हासिल किया. अदालत ने एक सप्ताह में जांच रिपोर्ट मंगाई है. इसी तरह के मामले पहले भी उठे हैं. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता को लेकर भी सवाल उठे थे जबकि तब वह मानव संसाधन विभाग संभाल रही थीं, जिसके अधीन सारे विश्वविद्यालय व शिक्षा संस्थान आते हैं. प्रधानमंत्री मोदी के दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक होने को लेकर भी प्रश्न उठाया गया था. बड़ी खोजबीन के बाद पुराने रिकार्ड में पता चला कि वहां से किसी नरेंद्र महावीरप्रसाद मोदी ने ग्रेजुएशन किया था जबकि पीएम के पिता का नाम दामोदरदास मोदी था.