अदूरदर्शी नीति का नतीजा, बिहार में नशीली शराब ने ढाया कहर

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    दीपावली त्योहार के मौके पर जहरीली शराब से 33 लोगों की दर्दनाक मौत हो जाना बिहार की नीतीशकुमार सरकार के दामन पर एक बड़ा दाग है. जब कहीं मद्यनिषेध लागू किया जाता है तो वहां शराब की तस्करी बढ़ जाती है या तो चोरी छिपे बाहर के राज्यों में शराब लाई और खपाई जाती है अथवा अवैध रूप से मिलावटी शराब बनाई जाती है, जो पीने वालों के लिए जहर साबित होती है. 

    इस जहरीली शराब से मुजफ्फरपुर में कई लोगों की आंख की रोशनी चली गई. गोपालगंज में 18 लोगों की मौत हुई. वहां अस्पताल ने बेहद लापरवाही दिखाई. वहां शराब कांड पीढ़ितों को स्ट्रेचर तक नहीं दिया गया. यह कितना अमानवीय था. बेतिया में 15 लोगों ने जान गंवाई. सरकार थोथा आदर्शवाद दिखाते हुए शराब बंदी लागू कर देती है लेकिन यह नहीं सोचती कि शराब की लत अचानक नहीं छूटती. 

    जो लंबे समय से नशे के आदी हैं, वे उसके बगैर रह नहीं सकते. शराब बंदी से भ्रष्टाचार बढ़ जाता है. पड़ोसी राज्यों से होने वाली मदिरा की तस्करी सरकार रोक नहीं पाती. इसके पीछे पुलिस, अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत रहती है. त्योहार के समय बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए मिलावटी शराब बनाई जाती है, जिसमें स्परिट, मिथाइल अल्कोहल नौसादर आदि की मिलावट होती है. 

    इसके सेवन से मौत होने या अंधा होने का खतरा बना रहता है. घर के लिए कमानेवाला व्यक्ति यदि जान गंवा बैठे या नेत्रहीन हो जाए तो परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता है. इन पीड़ित परिवारों को बिहार सरकार पर्याप्त सहायता दे और घर के किसी सदस्य को नौकरी दे. बिहार में शराब बंदी पूरी तरह विफल रही है. 

    एक वर्ष में 5 बड़े कांड हुए हैं और मिलावटी जहरीली शराब से 82 लोगों की मौत हुई है फिर भी सरकार की आंख न खुलना आश्चर्यजनक है. शराब बंदी की नीति एक ढकोसला साबित हुई है. गुजरात में पूर्ण शराब बंदी लागू है फिर भी लोग वहां बाहरी राज्यों से मंगाकर शराब पीते हैं. यही हाल महाराष्ट्र के गांधी जिला कहलानेवाले वर्धा का है. फिर मद्यनिषेध का आडम्बर क्यों होना चाहिए?