छत्रपति की प्रतिमा की अवमानना, कर्नाटक की घटना अत्यंत निंदनीय

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    अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में आदिलशाही सल्तनत तथा औरंगजेब से संघर्ष करने वाले वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा की कर्नाटक में अवमानना होना अत्यंत दुखद और निंदनीय है. हाल ही में अयोध्या में अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि जब-जब कोई औरंगजेब आतंक मचाता है तो उसके अत्याचार का जवाब देने शिवाजी उठ खड़े होते हैं. 

    जब पीएम शिवाजी महाराज का इतना महत्व स्वीकार कर रहे हैं तो उन्हीं की पार्टी बीजेपी के नेता व कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई अपने राज्य में हुई घटना को मामूली क्यों बता रहे हैं? बोम्मई ने कहा कि ऐसी छोटी घटना के लिए कोई कानून-व्यवस्था हाथ में न ले. ऐसा कहकर उन्होंने वातावरण शांत करने की बजाय आग में घी डालने का काम किया. बाद में उन्होंने लीपापोती करते हुए कहा कि मेरे वक्तव्य की तोड़मरोड़ की गई. बोम्मई ने इस घटना की निंदा करने की तत्परता नहीं दिखाई. 

    दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की बात भी उन्होंने नहीं कही. महाराष्ट्र एकीकरण समिति के विरोध पर तत्काल उन्होंने उंगली उठाई. केवल गिरफ्तारी और तत्काल दोषियों को छोड़ देने से समस्या हल नहीं होगी. महाराष्ट्र में देवता के समान पूजनीय छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अपमान कर उसका वीडियो सोशल मीडिया पर डालने वालों को आखिर किसने ऐसा करने का प्रोत्साहन दिया? उनके पीछे कौन लोग हैं, इसका पता लगाया जाना चाहिए. क्या कर्नाटक सरकार से ऐसी उम्मीद की जा सकती है? कर्नाटक में मराठी भाषी लोगों की भावना आहत करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता और ऐसे द्वेषपूर्ण कृत्य किए जाते हैं. 

    कर्नाटक की सरकार भी मराठी भाषी लोगों की भावना कुचलने का काम करती है. भाषा विवाद को लेकर कर्नाटक के मराठी भाषियों का संघर्ष पुराना है. बेलगांव, करवाड़, निपानी जैसे मराठी बहुल क्षेत्रों की जनता खुद को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग करती रही है. महाराष्ट्र एकीकरण समिति ने इस मुद्दे पर इन क्षेत्रों में चुनाव भी जीता था. वहां मराठी की पढ़ाई बंद कर कन्नड़ भाषा लाई गई. इसके बाद उपद्रवियों की हिम्मत मराठाओं के आदर्श शिवाजी महाराज की प्रतिमा की अवमानना करने तक पहुंच गई. इस दुष्प्रवृत्ति की कड़ी निंदा होनी चाहिए.