टोक्यो पैरालम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों की अद्भुत उपलब्धियां

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    टोक्यो पैरालम्पिक में भारत के दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपने चमत्कारी दिव्य खेल प्रदर्शन से रामायण की यह पंक्ति चरितार्थ कर दी है- मूक होहि वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन. विश्वस्तर के इस खेल आयोजन में अब तक भारत ने 19 मेडल जीते हैं जिनमें 5 गोल्ड मेडल शामिल है. इन खिलाड़ियों का जीवन अत्यंत संघर्षमय रहा है. किसी को बचपन में पोलियो हो गया. किसी ने दुर्घटना में अपने अंग खो दिए, कोई विद्युत आघात से अपना अंग गंवा बैठा लेकिन इन्होंने अपना हौसला मजबूत रखा और वह कमाल कर दिखाया जो कि हाथ-पैर सलामत रहने पर भी सामान्य लोग नहीं कर पाते.

    ये सारे पैरालम्पिक खिलाड़ी संकल्प के धनी हैं जिन्होंने शारीरिक न्यूनता या कमजोरी को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया. टेबल टेनिस के वीमेंस सिंगल्स में भाविनाबेन पटेल ने रजत पदक से शुरूआत की. डिस्कस थ्रो में योगेश कथूरिया ने सिल्वर मेडल जीता, शूटर अवनी लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल में गोल्ड मेडल हासिल किया और उसके बाद 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन एसएच1 स्पर्धा का ब्रांज मेडल जीता.

    इस तरह अवनी लेखरा 2 पैरालम्पिक पदक जीतनेवाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं. प्रवीणकुमार ने पुरुषों की ऊंची कूद टी-64 स्पर्धा में 2.07 मीटर की कूद से एशियाई रिकार्ड बनाते हुए रजत पद जीता. इसके पूर्व प्रमोद भगत ने बैडमिंटन में गोल्ड, सुहास नरवाल ने सिल्वर मेडल जीता था. 50 मीटर एयर पिस्टल में मनीष नरवाल ने गोल्ड व सिंहराज अधाना ने सिलवर जीता. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 2.68 करोड़ लोग दिव्यांग हैं. उनका हौसला बढ़ाने तथा शिक्षा व रोजगार में अवसर देने की आवश्यकता है इसके लिए अनुकूल नीतियां बनानी होंगी. टोकियो पैरालम्पिक के शानदार और बेमिसाल नतीजों से जाहिर है कि समुचित प्रोत्साहन व अवसर मिले तो दिव्यांग भी अपनी मंजिल हासिल कर लेते हैं.