शहरों में जगह की कमी वर्टिकल यूनिवर्सिटी का निर्णय अत्यंत उपयोगी

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    महाराष्ट्र के उच्च शिक्षा मंत्री उदय सामंत ने एक अनूठा विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में जगह की तंगी देखते हुए सरकार वर्टिकल यूनिवर्सिटी खोलने पर विचार कर रही है. नवभारत के एजुकेशन अवार्ड समारोह में उन्होंने कहा कि बड़े शहरों में विश्वविद्यालय के लिए कम से कम 10 से 15 एकड़ जमीन की आवश्यकता पड़ती है. इसकी बजाय वर्टिकल यूनवर्सिटी में ऊंची-ऊंची बहुमंजिला इमारतों में विश्व स्तर के पाठ्यक्रम आयोजित किए जा सकेंगे जिससे शिक्षा का स्तर ऊपर उठेगा. यह निर्णय अत्यंत उपयोगी व तर्कसंगत है.

    जब गगनचुंबी इमारतों में यूनिवर्सिटी साकार हो सकती है तो फिर कई एकड़ में फैले कैम्पस की क्या आवश्यकता है? कोरोना आपदा ने तो उन बड़े भूखंडों में बनाए गए बड़े स्कूल-कालेजों की उपयोगिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया जो ऑनलाइन शिक्षा की वजह से पिछले डेढ़ वर्ष से खाली पड़े हैं. वैसे भी, कोचिंग क्लासेस के साथ टाईअप के चलते कालेजों के क्लासरूम खाली पड़े रहते थे. जगह की कमी एक प्रमुख कारण है जो शहरों की वर्टिकल ग्रोथ करता है. मुंबई ही नहीं, विश्व के तमाम बड़े शहरों का यही हाल है.

    अमेरिका में न्यूयार्क, शिकागो अपने स्काई स्क्रैपर के लिए जाने जाते हैं. जहां इलाका समुद्र से घिरा हो और फैलाव की गुंजाइश न रह जाए तो ऊंची इमारतें बनाना ही सार्थक विकल्प रह जाता है. कितने ही शहरों का अधिकतम विस्तार हो जाने के बाद ऐसी स्थिति आ जाती है कि वर्टिकल ग्रोथ को अपनाना ही पड़ता है. उपराजधानी नागपुर में भी ऐसी स्थिति आती जा रही है. यहां कृषि विश्वविद्यालय की बीच शहर में बहुत बड़ी भूमि है. क्या इनके खेतों को शहर के बाहर ले जाकर इन कीमती जमीनों का वैकल्पिक उपयोग नहीं हो सकता? उच्च शिक्षा मंत्री सामंत का संकेत राज्य के अन्य बड़े शहरों के लिए भी ग्राह्य हो सकता है. जेल के लिए भी शहर के बीच इतनी जमीन क्यों चाहिए? या तो उसे वर्टिकल बनाया जाए या शहर से दूर ले जाया जाए. टाउन प्लानिंग में हमेशा भविष्य की रचनात्मक सोच होनी चाहिए.