छल-कपट करने वाला चीन किस मुंह से दे रहा लोकतंत्र की सीख

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    चीन अगर लोकतंत्र को लेकर प्रवचन देता है तो यह शैतान के मुंह में बाइबिल जैसी बात है. इस देश ने कदम-कदम पर लोकतंत्र को बुरी तरह कुचला है. फिर भी भारत और अमेरिका के रिश्तों में निकटता से बौखलाए हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि लोकतंत्र किसी देश का पेटेंट नहीं है, बल्कि मानवता का एक सामान्य मूल्य है. भारत के चुनाव में धन के इस्तेमाल का उल्लेख करते हुए झाओ ने कहा कि कुछ देशों में पैसे के बिना वोट नहीं मिल सकता. राजनीतिक दल अपने हितों को जनता से ऊपर रखते हैं. यह लोकतंत्र है या अमीरों का उत्थान? ऐसा कहने से पहले चीनी प्रवक्ता को अपना गिरेबान झांकना चाहिए.

    हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों पर चीन ने कितने जुल्म ढाए तथा कई दशक पहले बीजिंग के थ्यान आन मेन चौक पर आंतरिक लोकतंत्र की मांग कर रहे हजारों निहत्थे छात्रों को किस तरह गोलियों से भून दिया गया था. यह सारी बातें दुनिया के सामने हैं. चीन में कोई सरकारी भवन, सड़क या पुल बनाना हो तो वहां रहने वालों को आनन-फानन गायब कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया जाता है और बस्तियों पर बुलडोजर चलवा दिया जाता है. वहां कोई किसी कोर्ट से स्टे आर्डर नहीं ला सकता. चीन अपने यहां रहने वाले उइगर मुसलमानों पर तरह-तरह के जुल्म ढाता है. फिर उसे लोकतंत्र की बात करने का क्या हक है? चीन की व्यवस्था विचित्र है. वहां 1949 से कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है लेकिन अपने फायदे के लिए इस देश ने नियंत्रित पूंजीवादी ढांचा अपना रखा है.

    अपनी जनता को गरीब रखकर श्रमिकों से अधिकतम काम लेता है और ज्यादा से ज्यादा एक्सपोर्ट करता है. पश्चिमी देशों की अनेक बड़ी कंपनियों के शेयर चीन ने ले रखे हैं और उन पर अपना अधिकार बढ़ा लिया है. गरीब देशों को चीन अपने कर्ज के चंगुल में फंसा लेता है और उन पर अपनी नीतियां व आर्थिक साम्राज्यवाद लादता है. पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल इसके उदाहरण हैं. चीन व्यापार करते समय डॉलर में भुगतान लेता है. इससे उसके खजाने में इतने डॉलर हो गए हैं कि अमेरिका को भी धौंस देता है. छल, धूर्तता व धोखेबाजी उसकी विदेश नीति के अंग हैं. ऐसा देश किसी को क्या लोकतंत्र की सीख देगा!