गवर्नर पद की जगह बेबीरानी मौर्य को राजनीति ज्यादा पसंद

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    सचमुच विचित्र लगता है कि कोई व्यक्ति राज्यपाल जैसा गरिमामय पद छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ने की सोचे! फिर भी अपनी-अपनी इच्छा की बात है उत्तराखंड की राज्यपल बेबी रानी मौर्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. माना जाता है कि उन्हें सक्रिय राजनीति ज्यादा पसंद है और उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकती है. उन्होंनें 2007 में एत्मादपुर से चुनाव लड़ा था. जिसमें वो हार गई थीं. 

    आगरा की महापौर रह चुकी बेबी रानी मौर्य को आगरा या किसी अन्य जिले की दलित बहुल सीट से चुनाव मैदान में बीजेपी उतार सकती है. यह भी चर्चा है कि बीजेपी उन्हें उत्तरप्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. बेबीरानी मौर्य उत्तराखंड की दूसरी महिला राज्यपाल रही हैं. उनसे पहले एक समय मारग्रेट अल्वा वहां गवर्नर रह चुकी हैं. मौर्य 3 वर्षों से उत्तराखंड की राज्यपाल पद संभाल रही थीं. कुछ ऐसे ही उदाहरण अन्य नेताओं के हैं जो उच्च पदों को विभूषित करने के बाद छोटे पदों को स्वीकार करने में भी पीछे नहीं रहे.

    सक्रिय राजनीति में बने रहने की चाह में उन्होंने ऐसा किया. सबसे बड़ी मिसाल है चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य की जो अंग्रेज वाइसराय लार्ड लुई माउंटवेटन के चले जाने के बाद स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने. इस पद पर राजगोपालाचार्य 1950 तक बने रहे. डा. राजेंद्रप्रसाद का राष्ट्रपति चुने जाने पर राजगोपालाचार्य तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास प्रांत) लौट गए और वहां के मुख्यमंत्री बन गए. इसी तरह एचडी देवगौड़ा भारत के प्रधानमंत्री रहने के बाद जब पद से हटे तो अपने गृहराज्य कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाईक को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था लेकिन व फिर आकर महाराष्ट्र के सीएम बने. अर्जुनसिंह को पंजाब का गवर्नर बनाया गया था लेकिन वे फिर सक्रिय राजनीति में लौट आए.