पूरे राज्य में समान निर्णय क्यों नहीं, स्थानीय अधिकारियों पर जिम्मेदारी क्यों

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    यह बात समझ से परे है कि महाराष्ट्र सरकार अनलॉक करते समय पूरे राज्य में एक सरीखा निर्णय क्यों नहीं लेती, वह स्थानीय अधिकारियों पर जिम्मेदारी क्यों डालती है? इससे अनावश्यक रूप से भ्रम पैदा होता है. राज्य की जनता शासन से निर्णय में स्पष्टता व एकरूपता चाहती है. त्योहारों की भीड़ को देखते हुए राज्य सरकार ने दूकानों और होटल-रेस्टोरेंट का समय बढ़ाने का निर्णय लिया है. 

    राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दूकानों को रात 11 बजे तक और रेस्टोरेंट को रात 12 बजे तक खुले रखने की अनुमति दे दी है. मौजूदा नियमों के तहत रात 10 बजे तक दूकानों व रेस्टोरेंट संचालित करने की अनुमति है. स्वाभाविक रूप से इस फैसले से राज्य की जनता, दूकानदारों, रेस्टोरेंट मालिकों को खुशी होगी लेकिन इसमें भी एक शर्त डाली गई है कि स्थानीय जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) इस समयसीमा को और अधिक प्रतिबंधित कर सकता है. 

    ऐसा होने पर डीडीएमए अपनी मर्जी से निर्णय लेगा और दूकानें व रेस्टोरेंट जल्दी बंद करने को भी कह सकता है. यदि ऐसा हुआ तो जनता और दूकानदारों को कोई राहत नहीं मिल पाएगी. इस डिजिटल युग में कोरोना संक्रमण, मरीजों की संख्या, नए केस तथा डिस्चार्ज होनेवालों का आंकड़ा जैसी पूरी जानकारी हर वक्त अप-टू-डेट रहती है. इसलिए समूचे राज्य के लिए निर्णय भी एक साथ लेना आवश्यक है. 

    जब ताजी स्थिति सरकार की निगाह में है और कोरोना संक्रमण नियंत्रण में है तो फिर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के स्थानीय अधिकारियों पर जिम्मेदारी क्यों डाली जा रही है? समय आ गया है जब सामान्य स्थिति कायम करनी होगी. जब स्कूल खोल दिए गए और 22 अक्टूबर से सिनेमा हॉल व थियेटर भी खुलने जा रहे हैं तो फिर हिचक कैसी? आवश्यक प्रोटोकाल का पालन करते हुए राज्य में सभी ओर समान रूप से छूट दी जानी चाहिए. सरकार के फैसले में स्पष्टता व दृढ़ता झलकनी चाहिए.