केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने अब स्वीकार किया कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) (Gross domestic product) (GDP)की वृद्धि दर नकारात्मक या शून्य के करीब रह सकती है. अर्थव्यवस्था की कड़वी सच्चाई का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2020-21 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी की जबरदस्त गिरावट आई है, जिससे समूचे वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर निगेटिव बनी रहेगी. तीसरी व चौथी तिमाही में कुछ पुनरुद्धार होने पर भी दर नकारात्मक ही रहेगी. इसके बावजूद उन्होंने आशा व्यक्त की कि अगले वर्ष भारत तेजी से तरक्की करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन जाएगा.
अभी तो भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार पूरे वित्त वर्ष में इकोनॉमी 9.5 फीसदी सिकुड़ जाने के आसार हैं. वित्त मंत्री ने भारतीय ऊर्जा मंच को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना संकट आने और लॉकडाउन के पहले भी इस वित्त वर्ष में विकास दर सिकुड़ कर 4.2 प्रतिशत रह गई थी. 25 मार्च से सख्त लॉकडाउन लगाया गया था क्योंकि लोगों की जान बचाना जरूरी था. बुनियादी ढांचे पर खर्च करना सरकार की पहली प्राथमिकता है. दूसरी प्राथमिकता है कि भारत में भरपूर खाद्यान्न, सब्जियों व फलों का उत्पादन हो जिसका निर्यात किया जा सके. हम काफी निवेश आकर्षित कर रहे हैं जिसे आधारभूत ढांचे पर व्यय किया जाएगा. इससे पोर्ट कनेक्टिविटी मिलेगी और कृषि उपज के निर्यात में तेजी लाई जा सकेगी. फूड प्रोसेसिंग व कोल्ड स्टोरेज के लिए बुनियादी ढांचा आवश्यक है. कोरोना के बावजूद विदेशी निवेश उन कंपनियों द्वारा आकर्षित किया गया जिन्होंने ग्लोबल स्टैंडर्ड स्थापित किए हैं. भारत के कम कार्पोरेट टैक्स की वजह से अप्रैल-अगस्त में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. त्यौहारों के सीजन में मांग बढ़ने से घरेलू मांग में समाधानकारक वृद्धि होगी. कृषि व ग्रामीण भारत से जुड़ा प्राइमरी सेक्टर अच्छा काम कर रहा है. टिकाऊ वस्तुओं, कृषि उपकरणों, वाहनों आदि की मांग बढ़ी है. कोरोना पूर्व की स्थितियों की तुलना में सितंबर माह में परिवहन ईंधन तथा बिजली की मांग बढ़ी है.
कोरोना की चुनौती के बावजूद देश की जीडीपी में अगर कुछ दम बचा हुआ है तो किसानों और मजदूरों की मेहनत और उत्पादकता के कारण. इतने पर भी भारत के छोटे किसानों को अपनी उपज की कीमतें कम रखने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि उपभोक्ता महंगाई को लेकर शिकायत न करें. वित्तीय बाजार में छोटे उद्यमों पर दबाव रहता है कि वे ग्लोबल सप्लाई चेन को कम दामों पर आपूर्ति करें. भारत को निवेशकों के लिए आकर्षक बनाने के उद्देश्य से श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.