अकेले कांग्रेसी नहीं थे शामिल कोयला घोटाले में NDA के हाथ भी काले

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सीबीआई की विशेष अदालत ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला राज्यमंत्री रहे दिलीप रे (Former Union Minister Dilip Ray) को कोयला घोटाला मामले (Jharkhand coal scam) में दोषी ठहराया है. यह मामला झारखंड में कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित अनियमितता से संबंधित है. विशेष न्यायाधीश भरत पाराशर(CBI judge Bharat Parashar) ने बीजद नेता दिलीप रे को आपराधिक षडयंत्र तथा अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया और कहा कि रिकार्ड पर यह बात स्पष्ट है कि एक कामचलाऊ (केयरटेकर) सरकार के मंत्री के रूप में दिलीप रे ने विभिन्न निर्णय लेते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया तथा अपनी अधिकार सीमा से आगे जाकर कदम उठाए. उन्होंने सीएमएन एक्ट-1973 के प्रावधानों का उल्लंघन किया. अदालत ने उस समय के कोयला मंत्रालय के 2 वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीपकुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम के साथ कैस्ट्रॉन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड, इसके डायरेक्टर महेंद्र कुमार अग्रवाल व कैस्ट्रॉन माइनिंग लि. को भी दोषी ठहराया. यह मामला 1999 में झारखंड के गिरीडीह में ब्रम्हडीह कोयला ब्लाक के आवंटन से जुड़ा हुआ है. 14 अक्टूबर को कोर्ट सजा की मात्रा पर सुनवाई करेगा.

तब केयरटेकर सरकार थी

दिलीप रे के खिलाफ शिकायत उस समय की है जब वाजपेयी सरकार संसद में विश्वासमत हार गई थी और केयरटेकर सरकार के रूप में काम कर रही थी. रे के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि सीटीएल को ब्रम्हडीह कोल ब्लॉक आवंटित करने का फैसला स्क्रीनिंग कमेटी ने लिया था. इसमें रे का कोई हाथ नहीं था. सीबीआई का आरोप था कि उपरोक्त कोल ब्लॉक के आवंटन में निजी पार्टियों और सरकारी अधिकारियों ने आपराधिक षडयंत्र किया था. ब्रम्हडीह कोयला खान की पहचान कैप्टिव कोल ब्लॉक के रूप में नहीं हुई थी, इसलिए वह निजी पार्टी को आवंटित नहीं किया जा सकता था. स्क्रीनिंग कमेटी भी ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह निस्संदिग्ध रूप से प्रमाणित हो चुका है कि सभी पांचों अभियुक्तों ने कैस्ट्रॉन टेक्नोलॉजीज लि. (सीटीएल) को कैप्टिव कोल ब्लॉक देने के लिए मिलकर षडयंत्र रचा और भारत सरकार के कोयला मंत्रालय से धोखाधड़ी कर इसे हासिल कर लिया. अदालत ने कहा कि किसी भी तार्किक या कानूनी आधार के बिना नीति में नरमी बरतना दिखाता है कि मंत्री ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया व जनहित के खिलाफ जाकर कोल ब्लॉक आवंटित करने का निर्णय लिया.

उस समय काफी धांधली हुई

निजी क्षेत्र को कोयला ब्लॉक आवंटित करने के मामले में काफी धांधली होती रही. इसमें नेताओं और अफसरों की मिलीभगत थी. ऐसे-ऐसे लोगों ने बोगस कंपनियां बनाकर कोयला ब्लॉक आवंटित करा लिया जिन्हें खनन का कोई अनुभव नहीं था. उस समय कई दलाल सक्रिय थे जो दिल्ली में मंत्री और प्रशासन के उच्च अधिकारियों तक अपनी सीधी पहुंच होने का दावा करते थे. बताया जाता है कि तब कुछ लोगों ने करोड़ों रुपए इसी चक्कर में खर्च किए कि उन्हें कोल ब्लॉक मिल जाए और बाद में वे इसे किसी और को ज्यादा दाम पर बेच दें. तब यह धारणा फैल चुकी थी कि रिश्वत के जरिए कुछ भी हो सकता है. किसी ने बिजली संयंत्र बनाने के नाम पर उसकी जरूरत के लिए कोल ब्लॉक मांगा तो किसी ने इस उद्देश्य से फर्जी कंपनी भी बना ली. तत्कालीन कोयला राज्यमंत्री, एडिशनल सेक्रेटरी, प्रोजेक्ट एडवाइजर, स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन को सजा सुनाना दर्शाता है कि कोयला घोटाले में विलंब से ही सही, कानून ने अपना काम किया.