नहीं मिल रहे सत्ता के मीठे खजूर, इसलिए कहते हैं हम नहीं जी-हुजूर

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि हम जी-23 जरूर हैं लेकिन जी-हुजूर नहीं हैं. उनके इस कथन पर आपकी क्या राय है?’’ हमने कहा, ‘‘जी-हुजूरी एक कला है जिसे हर कोई नहीं सीख सकता. जो व्यक्ति जी-हुजूरी करने में कुशल होता है, वह कहता है- जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे! जी-हुजूरी की परम्परा मुगल काल से चली आ रही है. दरबारी हमेशा बादशाह या सुलतान की हां में हां मिलाते आए हैं. अंग्रेजों ने भी अपने ऐसे चाटुकारों को रायबहादुर व रायसाहब का खिताब दिया, जिनकी अपनी कोई राय नहीं रहा करती थी. ऐसे लोग स्पष्टवादी होने का खतरा नहीं उठाते थे.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कपिल सिब्बल को मालूम ही होगा कि कांग्रेस अपनी शुरुआत के वर्षों में पिटीशन राइटरों की जमात हुआ करती थी. तब ब्रिटिश शासकों को बड़े आदर के साथ संबोधित करते हुए विनम्रतापूर्वक अपनी मांगें रखी जाती थीं. कांग्रेस में स्वाभिमान तब जागा जब लोकमान्य तिलक ने ‘गरम दल’ बनाया और अंग्रेज शासकों को गर्जना कर ललकारा. उन्होंने निर्भीकतापूर्वक कहा कि स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है. महात्मा गांधी यद्यपि ‘नरम दल’ वाले गोपाल कृष्ण गोखले के शिष्य थे लेकिन व्यवहार में उन्होंने लोकमान्य तिलक की नीतियों को अपनाकर देशवासियों को करो या मरो का संदेश दिया. गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो या क्विट इंडिया का नारा दिया.’’ 

    हमने कहा, ‘‘हुजूर शब्द सामंतवादी संस्कृति से जुड़ा है. गरीब व सामान्य लोग सरकारी अफसरों या पुलिस अधिकारियों को हुजूर कहकर संबोधित करते आए हैं. प्रेमी भी प्रेमिका को रिझाने के लिए गाता है- रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर, जलवा फिर एक बार दिखा दो मेरे हुजूर. जिनकी अपने हुजूर के प्रति अंधनिष्ठा है, वे कहते हैं- हुजूरेवाला जो हो इजाजत तो हम ये सारे जहां से कह दें- तुम्हारी अदाओं पे मरते हैं, जो तुमने कहा है, वो करते हैं हम.’’