सरकार को जनकल्याणकारी होना चाहिए, निर्ममता से जनता का शोषण करनेवाली नहीं! केंद्र सरकार ने संवेदना को ताक पर रखकर पेट्राल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर प्रतिदिन 1000 करोड़ रुपए कमाए. स्वयं सरकार ने इसकी जानकारी संसद में दी कि कैसे उसने 2020-21 में पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी से 3.72 लाख करोड् रुपए कमाए.
कोरोना महामारी के साए में गुजरे वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की अब तक 8 माह में पेट्रोल-डीजल से होने वाली उत्पादन शुल्क वसूली दोगुनी से अधिक बढ़ गई. इससे मोटी कमाई केंद्र की ही हुई क्योंकि 3.72 लाख करोड़ रुपए की रकम में से राज्यों को 20,000 करोड़ रुपए से भी कम की राशि दी गई. वर्ष 2019 में पेट्रोल पर कुल उत्पाद शुल्क 19.18 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 15.83 रुपए प्रति लीटर था. सरकार ने पिछले वर्ष 2 बार उत्पाद शुल्क बढ़ाकर पेट्रोल पर यह दर 32.98 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 31.83 रुपए कर दी थी. खुदरा कीमतें देश भर में रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई थीं.
पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, रोड और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस, कृषि व विकास इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस लगाया गया. यह बिल्कुल भी नहीं सोचा गया कि शहरों में घर से कार्य स्थल की दूरी काफी होने से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी टू व्हीलर का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. सरकार उन पर बेदर्दी से महंगी पेट्रोल कीमत का भार लादती चलती गई. डीजल महंगा होने से अनाज, किराणा, सब्जियां सभी कुछ महंगे होते चले गए. जनता का जीना दूभर करने में सरकार ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. करोड़ों की संपत्ति रखने वाले राजनेताओं को पता ही नहीं रहता कि महंगाई किस चिड़िया का नाम है. इसे सीमित आमदनी वाली जनता ही भुगतती है जिसकी कोई सुनवाई नहीं है. पेट्रोल-डीजल रिकार्ड स्तर तक महंगा होने से जनता हलाकान है जबकि निष्ठुर सरकार अपनी कमाई में मस्त है.