'Hatdi' is worshiped in every house for 3 days in Diwali

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    उल्हासनगर : भारत (India) सहित पूरी दुनिया में दीवाली (Diwali) के पर्व को धूमधाम (Fanfare) से मनाया जाता है। अपने देश में दिवाली की धूम (Sputter) देखने लायक (Worth) होती है। सिंधी समाज(Sindhi Society) पूरे दुनियाभर (Whole World) में फैला हुआ है। महाराष्ट्र (Maharashtra) में जितने भी शहर है उनमें उल्हासनगर (Ulhasnagar) में सबसे ज्यादा सिंधी समाज रहता है। ज्यादातर सिंधी समाज व्यवसाय (Business) से जुड़ा है। उनके लिए दिवाली में हटडी पूजा(Hatdi Puja) का खास महत्व है। क्योंकि सिंधी समाज में मान्यता (Recognition) है की हटडी को पूजने से धंधे व्यापार में बहुत तरक्की (Improvement) मिलती है।

    गौरतलब है कि 5000 वर्ष पुरानी सिंधी सभ्यता और संस्कृति में भी हटडी का जिक्र है। हटडी का असली मतलब होता है हट, मतलब दुकान, जिस किसी भी सिंधी परिवार में लड़का पैदा होता है तो उसके पहली दिवाली पर ही उसके नाम से हटडी पूजी जाती है। उसके पीछे एक ही कारण है की बड़ा होकर यह बच्चा व्यापार करेगा और लक्ष्मी मां इसको धंधे व्यापार में बरकत देगी।

    दिवाली से 3 दिन चांद रात तक पूजा जाता है

    पुरातत्व विभाग की खुदाई के वक्त मोहन जोदड़ो में जो अवशेष मिले थे। वो तकरीबन 5000 वर्ष पुराने थे। उसमें मिले अवशेषों में व्यापार से संबंधित वस्तुओं का भी समावेश था। काफी उन्नत सिंधी सभ्यता थी उस वक्त भी। हटडी मंदिर नुमा होती है जिसमें माता लक्ष्मी और अन्य देवी देवताओं को विराजमान किया जाता है और दिवाली से 3 दिन चांद रात तक पूजा जाता है। मान्यता है कि इससे व्यापार और उद्योग में बड़ी सफलता मिलती है। ऐसा हमारे बड़े बुजुर्गों का कहना रहा है। पूरे दुनिया में अब भी यही प्रथा चल रही है और सिंधी समाज तरक्की कर रहा है।

    विशेष समाज के लोग हटडी बनाने का काम करते है

    दिवाली पर्व शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष बचे है। लोगों ने अपने-अपने घरों का रंग रोगन शुरू कर दिया है। वहीं लगभग हर दुकानदार ग्राहकों को अपनी दुकान की ओर आकर्षित करने के लिए दुकानों को सजा चुके है और  कुछ दुकानदारों ने ग्राहकों के लिए स्कीम भी शुरू की है। छोटा-बड़ा हर स्तर का दुकानदार दीवाली पर्व की तैयारियों में जुट गया है। सिंधी बाहुल्य क्षेत्र उल्हासनगर में एक विशेष समाज के लोग हटडी बनाने का काम करते है। हमेशा की तरह इस साल भी वह हटडी बनाने में लगे हुए है।

    फुटपाथ पर रहता है हटडी बनाने वाला परिवार

    हटडी को शुभ माना जाता है, लोग बाजार से खरीदकर हटडी को घर पर लाकर पूजते है और भगवान से लक्ष्मी की प्राप्ति और अपने बच्चों की आर्थिक उन्नति की कामना करते है। वहीं हटडी को बनाने का काम करने वाले लोग आज भी आर्थिक तंगी का शिकार है। वर्षों से  यह वर्ग फुटपाथ पर ही हटडी बनाने का काम करता आ रहा है और परिवार सहित यहीं रहने को मजबूर है।

    रंग-बिरंगे पताकों से सजाया जाता है हटडी

    स्थानीय कैम्प नंबर 2, टेलीफोन एक्सचेंज के समीप के फुटपाथ और हटडी बनाने वाले मुकेश किशन का कहना है कि हम लोग दीवाली पर्व से डेढ़ महीने पहले से हटडी को बनाना शुरू करते है। दस रुपए से लेकर सौ और डेढ़ सौ रुपए तक इसकी कीमत होती। जो जितनी डेकोरेट होगी उसी हिसाब से उसको हम बेचते है। मेरे पिता भी यही काम करते थे।  अब मैं भी इसी काम से जुड़ा हूं। मिट्टी और बांस के टुकड़े से हटडी बनती है और उसपर रंग बिरंगे पताके लगाए जाते है।