नेता नहीं रह सकते बिना VIP बने

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    किसी नेता के अरमान तब तक पूरे नहीं होते जब तक उसे वीआईपी वाली हैसियत हासिल नहीं होती. वह आम न रहकर खासमखास दिखना चाहता है. रोबदाब और विशिष्ट पहचान दिखाने के लिए गाड़ियों पर झंडी चाहिए. कोई खतरा न भी रहे तो भी उसके मन में स्टेन गन धारी गार्ड की सिक्योरिटी पाने की ललक बनी रहती है.

    अपनी ठसन दिखाने के लिए वह हमेशा तत्पर रहता है. कहावत भी है- जो दिखता है, वो बिकता है! नेता सादगी से रहे तो उसे कोई देखना भी पसंद न करे. बगैर तामझाम के नेता कैसा! उसके साथ चमचों की फौज और मुसाहिबों का जमघट भी तो होना चाहिए. हिमाचल प्रदेश में विधायकों की तमन्ना पूरी हो गई. वहां फिर से वीआईपी कल्चर लौट आएगा. सादगी गई तेल लेने! अब विधायकों की स्पेशल पहचान और रुतबा दिखाने के लिए उनकी गाड़ी पर झंडी लगाने को सरकार ने मंजूरी दे दी है. उनकी झंडी मंत्रियों की कार की झंडी से अलग किस्म की होगी.

    विधायकों ने अपने लिए झंडी हासिल करने के लिए बहुत पापड़ बेले. वे इस दलील को दोहराते रहे कि जब मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव जैसे अधिकारी अपनी गाड़ियों में झंडी लगा सकते हैं तो प्रोटोकाल में उनसे ऊपर रहने वाले विधायक क्यों इससे वंचित हैं? आखिर विधायकों ने प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार से अपनी मांग मनवा ली. कैबिनेट की मंजूरी के बाद वे भी कार पर झंडी लगाने वाले वीआईपी बन जाएंगे. क्या बीजेपी की सरकार होने से झंडी का रंग भगवा रहेगा?