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कुछ ऐसे भी वकील होते हैं जिनका कानूनी ज्ञान चाहे बहुत अधिक न हो लेकिन किस्मत उन पर मेहरबान रहती है. वे मामले को मैनेज करने या सेटिंग में माहिर होते हैं. इस तरीके से वे इतनी दौलत कमा लेते हैं जितना कोई बड़े से बड़ा जज भी नहीं कमा पाता. ऐसा ही एक वकील इनकम टैक्स विभाग (Income Tax (I-T) Department) की चपेट में आ गया. आयकर विभाग ने अपने पक्षकारों (मुवक्किलों) से 217 करोड़ रुपये नकद फीस लेनेवाले चंडीगढ़ के वकील के दिल्ली, एनसीआर और हरियाणा स्थित 36 ठिकानों पर छापे मारे. वकील के 10 बैंक लॉकरों को भी सील किया गया. यह वकील वकालत कम, दलाली ज्यादा करता था और कोर्ट के बाहर व्यावसायिक मध्यस्थता तथा वैकल्पिक विवाद समाधान के मामले निपटाता था. वह अपने मुवक्किलों से वाद निपटाने की फीस के रूप में बड़ी नकद राशि वसूलता था. आयकर छापों के दौरान उसके ठिकानों से विगत कई वर्षों में किए गए बेहिसाबी लेन-देन और निवेश से जुड़े दस्तावेज बरामद किए गए.

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर विभाग (सीबीडीटी) (Central Board of Direct Taxation) (CBDT), के अनुसार वकील  (Advocate) ने एक मामले में 117 करोड़ रुपये नकद फीस ली जबकि रिकार्ड में सिर्फ 21 करोड़ रुपये की फीस का चेक से लिया गया भुगतान दिखाया गया. एक अन्य मामले में इस वकील ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंजीनियरिंग कंपनी से फीस के तौर पर 100 करोड़ रुपये नकद लिए थे. सीबीडीटी ने अपनी जांच में पाया कि इस बेहिसाबी नकद रकम से वकील ने आवासीय व कमर्शियल प्रापर्टी खरीदी. इसके अलावा एक स्कूल को संचालित करनेवाले ट्रस्ट पर कब्जा करने के लिए भी इस रकम का इस्तेमाल किया गया. छापों के दौरान जो दस्तावेज बरामद हुए उनमें 100 करोड़ से अधिक नकदी का पिछले 2 वर्षों में विभिन्न संपत्तियों में निवेश किए जाने के सबूत भी मिले.

जाहिर है कि सीधे रास्ते या वैध तरीके से वकालत करनेवाला इतनी दौलत कमा ही नहीं सकता. जरूर इस वकील की सरकारी कार्यालयों में सेटिंग रही होगी. वह उल्टे सीधे तरीके से अपने मुवक्किलों का काम बना देता होगा तभी तो उसे इतनी महंगी फीस मिलती होगी. इसे फीस की बजाय कमीशन कहना ही उचित होगा. यह सारा नंबर 2 के पैसे का खेल है जब वादी और प्रतिवादी अदालत में न जाकर बाहर ही किसी वकील के जरिए मध्यस्थता कराना चाहते हैं तो अवश्य ही दाल में कुछ काला रहता होगा. आयकर विभाग कड़ी निगरानी रखे तो ऐसे न जाने कितने ही मगरमच्छ पकड़े जा सकेंगे.