जब कोई आरोपी किसी तोपचंद का बेटा हो तो उसे सम्मन भी अत्यंत सम्मानपूर्वक भेजा जाता है. पुलिस अपने सामान्य स्वभाव के विपरीत विनम्रता और शालीनता दिखाती है. कोई सामान्य अपराधी हो तो पुलिस बेहिचक उसकी गर्दन पकड़कर रस्सी से बांधकर रास्ते से खींचते हुए ले आए लेकिन एक तरह से अपने बड़े बॉस के बेटे से तो पुलिस भी बेहद अदब से पेश आएगी. लखीमपुर खीरी मामले में किसानों की हत्या का आरोपी आशीष मिश्रा केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा है. जब टेनी का पुत्र है तो टेनिस की गेंद जैसा उछलेगा ही! पुलिस की क्या मजाल जो ऊपर से स्पष्ट संकेत मिले बिना उसे हाथ लगाए.
यूपी हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट का नाराजगी जताना स्वाभाविक था. यूपी पुलिस के ढीले रवैये और गिरफ्तारी में देर किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने तंज कसते हुए कहा कि 302 के आरोप में यह नहीं होता कि आरोपी से कहा जाए- प्लीज आप आ जाइए. आरोपी कोई भी हो, कानून को अपना काम करना चाहिए. यह गंभीर केस है लेकिन केस को वैसे नहीं देखा जा रहा है. कथनी और करनी में फर्क नजर आ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा जायज है लेकिन पुलिस चाहे किसी भी राज्य की हो, अपने राजनीतिक आकाओं के सामने मजबूर सी हो जाती है पुलिस अधिकारियों की पोस्टिंग, तबादला, प्रमोशन और डिमोशन सब सत्ताधारियों के हाथों में होता है. इसलिए पुलिस राजनेता या उनके परिजनों को खफा नहीं करना चाहती. उसे पता है कि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए. एक तो केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और ऊपर से बीजेपी का नेता. मतलब करेला और नीम चढ़ा! इसीलिए प्लीज आ जाइए कहकर पुलिस ने नीम के झाड़ को मीठे शरबत से सींचने में ही अपनी खैरियत समझी.