कब तक खड़ी रहोगी, अब मिला बैठने का कानूनी अधिकार

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    घोड़ा एकमात्र प्राणी है जो पूरी जिंदगी में कभी बैठता नहीं! यहां तक कि खड़े-खड़े ही सोता है. घोड़े की जीवनशैली इंसानों पर लागू नहीं की जा सकती क्योंकि हार्सपावर और ह्यूमन पावर में फर्क है. इंसान के लिए बैठना और थक जानेपर विश्राम के लिए लेटना जरूरी है. मानव की काया की यही माया है. इतने पर भी दुकानों में काम करनेवाले कर्मचारियों को बैठने की इजाजत नहीं दी जाती. उन्हें 10 से 12 घंटे खड़े-खड़े ड्यूटी करनी पड़ती है.

    मालिक का रवैया यही रहता है कि नौकरी कर रहे हो तो भुगतो. वैसे भी रूआबदार मालिक जब चाहे कर्मचारी से उठक-बैठक करवा सकता है. होटल के गेट पर दरबान भी खड़े रहकर ड्यूटी करता है. स्टार होटल में प्रवेश के समय जब गार्ड सैल्यूट मरता है तो लोगों को अच्छा लगता है लेकिन उसके पैरों की पीड़ा या दर्द के बारे में कोई नहीं सोचता, चौराहे का सिपाही भी खड़े रहकर ड्यूटी बजाता है. पुराने टीचर सजा दिया करते थे- होमवर्क करके नहीं आया, बेंच पर खड़ा हो जा.

    बात महिलाओं की है. उन्हें राहत देने के लिए तमिलनाडु में राइट टु सिट (बैठने का अधिकार) कानून लागू किया गया है. इसके पहले केरल ने यह कानून लागू कर दिया था. इन राज्यों में यह कानून आने से पहले कपड़ा, ज्वेलरी आदि दूकानों में कर्मचारियों को खड़े होकर ही ग्राहकों से संवाद करना होता था. उनके लिए बैठने की कोई सुविधा थी ही नहीं. महिलाओं को इससे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता था. उन्हें पैरों में दर्द, कमर दर्द जैसी समस्या रहती थी. पीरियड्स के दौरान घंटों खड़े रहना बेहद मुश्किल हो जाता था. अब महिलाओं को बैठने की छूट मिल गई है.

    तमिलनाडु व केरल के समान देश के अन्य राज्यों में भी महिलाओं को राइट टु सिट दिया जाना चाहिए. डाक्टर भी इस बात की पुष्टि करेंगे कि लगातार खड़े रहना स्वास्थ्य के लिहाज से ठिक नहीं है. इससे घुटनों और पंजों पर शरीर का भार आता है. कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि नेता चुनाव में खड़े होते हैं, जनता को राशन की कतार में खड़े रहना पड़ता है, जवानों को अटेंशन की मुद्रा में खड़े रहने को कहा जाता है लेकिन किसी महिला सेल्स पर्सन को 10 घंटे खड़े रखना अमानवीय है. उसे बीच-बीच में अपनी मर्जी से बैठने की आजादी होनी ही चाहिए.