मानोरा में महंगाई मार गई, जीवनावश्यक चीजों में लगातार बढ़ोत्तरी

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    • सरकार पर कोई असर नहीं 

    मानोरा. कोरोना के बाद मध्यम वर्गीय तथा गरीब परिवार की मुसीबतों को मंहगाई ने मार डाला. साल का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली का माना जाता है. नए कपड़े, पटाखे, रंग रोगन, मिठाइयां, स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ दीपावली की खुशियां मनाने में अनोखा मजा रहता है. महंगाई के कारण आसमान छूती दामों के कारण हर परिवार का महीने का बजट पांच से छह हजार तक बढ़ गया है. जिससे पिछले 2 साल में बचत बंद होकर सभी पर कर्ज बाजारी वाली स्थिति नजर आ रही है. 

    दीपावली के उजाले पर महंगाई का अंधेरा साया 

    पेट्रोल डीजल सहित खाद्य सामग्री में भारी वृद्धि के कारण गरीब एवं मध्यम वर्ग के लिए दिवाली एक सपना रह गई है. सब्जी दूध से लेकर निर्माण साहित्य 20 से 25 परसेंट महंगा हो गया है. किसानों के कृषि माल को उचित दाम न मिलने से थालियों में से सब्जियां गायब होने लगी है. किराना माल से लेकर अनाज तक हर चीज में दाम बढ़ गए हैं और तो और माचिस की डिबी भी दुगनी हो गई है.

    उज्जवला योजना अंतर्गत नि:शुल्क गैस कनेक्शन दिए गए थे. अब महंगे सिलेंडर खरीदना नामुमकिन रहने से गरीबों ने फिर से चूल्हे जलाना शुरू कर दिए हैं. लेकिन चूल्हे जलाने के लिए केरोसिन नहीं मिल रहा. दीपावली के उजाले पर महंगाई के अंधेरे का काला साया मंडरा रहा है.

    महंगाई से कमाई खत्म बचत शून्य  

    बढ़ती महंगाई का असर सरकारी कर्मचारियों को महसूस नहीं होता. क्योंकि उनको बोनस और अन्य लाभ मिलते रहते हैं. लेकिन किसानों और खेती मजदूरों की बात इन से बिल्कुल अलग है. 2 माह पूर्व सोयाबीन के दाम अच्छे दाम रहने से किसानों को दिवाली अच्छी जाने की संकेत थे. लेकिन लगातार बरसते पानी में सोयाबीन की फसल बर्बाद होकर उपज में कमी हुई.

    हमेशा की तरह किसानों का माल बाजार में आते ही सोयाबीन के दाम 10,000 से नीचे लुढ़क कर 5,000 रू. प्रति क्विंटल पर पहुंच गया. कोरोना के कारण संपूर्ण देश तथा नागरिकों पर आर्थिक संकट का साया है. गत 2 वर्षों से पटरी से नीचे उतरी व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर आते-आते महंगाई के कारण फिर से बिगड़ गई. महंगाई के कारण कमाई पूरी खत्म होने के साथ बचत शून्य हो गई.