Pegasus Case
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    संसद के मानसून सत्र पर इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाई वेयर से की गई जासूसी का मुद्दा छा गया है. कांग्र्रेस ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि बीजेपी ‘भारतीय जासूस पार्टी’ बन गई है तथा आरोप लगाया कि इस इजराइली सॉफ्टवेयर के जरिए राहुल गांधी की जासूसी की गई. कांग्रेस ने यह भी सवाल किया कि यह स्पाईवेयर कितने में खरीदा गया? ऐसी रिपोर्ट है कि मोदी सरकार के 2 मंत्रियों तथा विपक्ष के 3 नेताओं की जासूसी की गई. ‘वायर’ नामक डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म ने कहा कि फ्रांस की संस्था फारबिडन स्टोरीज व एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मिलकर यह जानकारी जुटाई जिसे पेगासस प्रोजेक्ट का नाम दिया गया.

    कहा जाता है कि 80 पत्रकारों के फोन नंबर जासूसी की लिस्ट में शामिल थे. पेगासस ने भारत में 300 मोबाइल फोन को अपना निशाना बनाया. 10 देशों के मीडिया संस्थानों और सैकड़ों पत्रकारों ने मिलकर खुलासा किया कि पेगासस के जरिए दुनिया भर की सरकारें पत्रकारों, कानून क्षेत्र से जुड़े लोगों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों की जासूसी करा रही हैं. केंद्र सरकार ने मीडिया समूहों और वरिष्ठ पत्रकारों की किसी भी प्रकार से जासूसी कराए जाने के आरोपों से इंकार किया. वाट्सएप ने 2019 में इजराइली कंपनी ‘एनएसओ’ पर आरोप लगाया कि उसके जासूसी करने वाले स्पाईवेयर का इस्तेमाल वाट्सएप के यूजर्स पर किया गया था.

    जिन 121 भारतीय नागरिकों के फोन कॉल्स की जासूसी हुई उनमें भीमा कोरेगांव मामले के वकील, एल्गार परिषद मामले के आरोपी, मानवाधिकार वकील आदि का समावेश था. प्रश्न उठता है कि यह जासूसी किसने और किसके आदेश पर करवाई गई? इस तरह सर्विलांस या निगरानी रखना क्या निजता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है? यदि सरकार का इससे लेना-देना नहीं है तो इस तरह की जासूसी में किसका स्वार्थ है?