कारगिल विजय दिवस : जवान की शहादत बनी प्रेरणा, एक ही गांव के 150 जवान सेना में हुए भर्ती

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    नई दिल्ली : हम सब भारतीय के लिए कारगिल युद्ध कभी न भूलने वाला क्षण है। एक ऐसा लम्हा जब हमने अपने 527 जवान खो दिए और दूसरी ओर विजय हासिल किया। 1999 में भारत के वीर योद्धाओं ने कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को खदेड़ा और तिरंगा लहराया। यह जीत का सफर इतना भी आसान नहीं था। इस जीत को पाने के लिए हमारे देश के लाल को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी। इसलिए यह कारगिल दिवस हमारे लिए कई मायनो में अविस्मरणीय दिन है।

    जवानों की शहादत कभी खाली नहीं जाती, उनके जाने के बाद भी वें हमारे भीतर एक प्रेरणा बनकर जिंदा रहते है। आज हम आपको एक ऐसे ही जवान की कहानी बताने जा रहे है, जो शहादत के बाद अपने गांव के युवाओं लिए आदर्श बन गए। तो चलिए जानते है इस  प्रेरणादायक कहानी के बारे में…..  

    शहादत बनी प्रेरणा 

    कारगिल युद्ध में शहीद हुए सुराणा गांव के सुरेंद्र यादव अपने गांव के लिए प्रेरणास्थान बन गए। उनकी शहादत ने ऐसी प्रेरणा दी कि सुराना और पड़ोस के सुठारी गांव के 150 से ज्यादा लोग सेना का हिस्सा बन गए। इस विषय पर बोलते हुए ग्रांमसेवक मोनिका यादव नेब बताया कि आजादी के पांच दशक में करीब गांव के 80 लोग सेना का हिस्सा थे। लेकिन कारगिल युद्ध में फतह होने के बाद 150 से अधिक युवा सेना में भर्ती हुए।

    गांव की महिलाएं हुई सेना में भर्ती 

    इस बारें में गांव के बुजुर्ग महावीर सिंह ने बताया कि गांव की दो बेटियां सेना में, आठ बहू और बेटियां अर्धसैनिक बलों में एवं 35 बेटियां पुलिस सेवा में कार्यरत हैं। कारगिल जंग से पहले कोई बहू या बेटी सेना या दूसरे दलों में नहीं थीं। कारगिल युद्ध न केवल इन गांव वासियों के लिए बल्कि हम सब के लिए प्रेरणा है। जवानों की शहादत हमें लड़ने का जज्बा और देशभक्ति सिखाती है। 

    शहादत के बाद गांव के युवाओं ने ली शपथ 

    सुराना गांव के निवासी राकेश कुमार ने बताया कि जब सुरेन्द्र यादव का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा तो हजारों लोग उन्हें सलामी देने पहुंचे थे।अंतिम संस्कार से पहले 100 से ज्यादा युवाओं ने शपथ ली थी कि वे सेना में जाकर इसका बदला लेंगे। 

    आज भी जवान की फोटो लेकर सोती हैं मां

    जवान देश के रक्षा करते अपना कर्तव्य निभाते है। युद्ध में शहीद हुए जवानों को हम सब विनम्र भाव से याद करते है। लेकिन उनका परिवार पूरी जिंदगी एक एक लम्हा होने यादों के सहारे जीते है। सुरेंद्र के भाई वीरेन्द्र ने बताया कि मां चंपा देवी रात को भाई की फोटो साथ लेकर सोती हैं। उठते ही फोटो निहारती हैं। वे भी जब किसी सैनिक को देखते हैं तो भाई याद आ जाते हैं।