Congress
File Photo

    Loading

    कभी भारत पूरी तरह कांग्रेसमय था. तब कहा जाता था कि यदि किसी लैम्प पोस्ट या बिजली के खम्बे को भी कांग्रेस का टिकट दे दिया जाए तो वह चुनकर आ जाएगा. नेहरू युग में कांग्रेस के सामने कोई सबल चुनौती नहीं थी लेकिन समय की बलिहारी है कि आज इसी कांग्रेस को नई पीढ़ी भूलती चली जा रही है. 2014 से देश में मोदी मैजिक इस तरह हावी हो गया कि केंद्र सहित अधिकांश राज्यों में बीजेपी का बोलबाला है. जहां तक मध्यप्रदेश की बात है, वहां बीजेपी के सरकार को 18 वर्ष हो रहे हैं. राज्य की एक पीढ़ी कांग्रेस से विशेष रूप से परिचित नहीं है.

    राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के बारे में उसे जानकारी नहीं है इसलिए वह बीजेपी सरकार के काम से कांग्रेस की तुलना नहीं कर सकती. कांग्रेस ने वास्तविकता को देखते हुए बाल कांग्रेस बनाई है जिसके लिए 16 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों को सदस्यता दी जा रही है. यह बात सिर्फ बच्चों ही नहीं युवाओं के साथ भी है जिन्हें मध्यप्रदेश की रविशंकर शुक्ल, कैलासनाथ काटजू, भगवंतराम मंडलोई, प्रकाशचंद सेठी, श्यामाचरण शुक्ल, अर्जुनसिंह के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकारों का इतिहास नहीं मालूम! दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार के बाद मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह के नेतृत्व में आई बीजेपी सरकार मजबूती से जम गई.

    यद्यपि थोड़े से समय के लिए कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद वह भी गिर गई. शिवराज मध्यप्रदेश के टिकाऊ मुख्यमंत्री साबित हुए हैं. इसलिए कांग्रेस की चिंता स्वाभाविक है कि कहीं एक पीढ़ी जो शीघ्र ही मतदाता बनने वाली है, कहीं कांग्रेस को भूल न जाए. जब युवक कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिल पाई तो बाल कांग्रेस का प्रयोग कितना सफल होगा, कहा नहीं जा सकता.