बंगाल में बिहारी भारी

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बंगाल (West Bengal) में बिहारी श्रमिकों की बहुतायत है. वे व्यापार, निर्माण कार्य, दुग्ध व्यवसाय, चौकीदारी आदि से जुड़े हैं. उनके बगैर वहां का कामकाज व जनजीवन ही ठप हो सकता है. बिहार विधानसभा के चुनाव (Bihar assembly elections) परिणामों का सीधा असर पड़ोसी राज्य बंगाल पर पड़ना ही है. बीजेपी (Bharatiya Janata Party)(BJP)सधी हुई रणनीति और मजबूत हौसलों के साथ बंगाल विधानसभा चुनाव जीतने की तैयारी में अभी से लग गई है. कोई आश्चर्य नहीं कि ममता बनर्जी का खेमा उजाड़ने का उपक्रम तत्काल शुरू हो जाए.

नंदीग्राम आंदोलन में ममता बनर्जी के साथी रहे वर्तमान परिवहन मंत्री शुभेन्दु अधिकारी ने ममता के प्रति बगावती तेवर दिखाए हैं. इसी तरह सिंगूर में टाटा नैनो प्लांट के खिलाफ किसानों के आंदोलन के समय ममता बनर्जी के साथ रहे रबीन्द्रनाथ भट्टाचार्जी ने भी टीएमसी छोड़ दी है. ममता ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए कुछ दिन पहले भट्टाचार्जी के करीबी टीएमसी ब्लाक अध्यक्ष महादेव दास को हटा दिया था, इससे भट्टाचार्जी नाराज हैं. यदि अपने पुराने साथियों को ममता बनर्जी ने इसी तरह छिटकने दिया तो टीएमसी बेहद कमजोर होकर रह जाएगी.

यदि बीजेपी ने टीएमसी के असंतुष्ट नेताओं को अपनी ओर खींच लिया तो ममता को चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. चूंकि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का स्वभाव एकाधिकारवादी है, इसलिए चुनाव के पहले उनके कितने ही नाराज साथी उनसे दूर जा सकते हैं. बीजेपी ने बंगाल का किला फतह करने की ठान ली है. इससे लगता है कि विधानसभा चुनाव में ममता को लोहे के चने चबाने की नौबत आ जाएगी.