अब श्रीलंका का कैसा रुख, भारत के साथ या चीन की तरफ

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यह भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है कि श्रीलंका के संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री राजपक्षे परिवार की चीन समर्थक श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने दो तिहाई बहुमत से प्रचंड जीत हासिल की है. 1978 में श्रीलंका ने राष्ट्रपति प्रणाली स्वीकार की. इसके बाद इतने बड़े जनाधार के साथ किसी पार्टी का चुनाव जीतना असाधारण माना जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुझानों में बढ़त देखते ही श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को बधाई दे दी थी. अब देखना होगा कि श्रीलंका अपने निकटतम पड़ोसी भारत के साथ रहेगा या चीन की ओर झुकेगा? श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के भाई हैं. इनका एक और भाई बासिल राजपक्षे सत्तापक्ष का नेता है. इसका तात्पर्य यही है कि श्रीलंका की संपूर्ण सत्ता राजपक्षे परिवार के हाथों में ही है. राजपक्षे की सफलता का कारण है कि उन्होंने राष्ट्रवादी भावना पर जोर देकर जनता के दिमाग में यह बात डाल दी थी कि मजबूत सरकार ही उसका उद्धार कर सकती है. राष्ट्रपति के अधिकारों पर बंधन लगानेवाला संवैधानिक संशोधन मैत्रीपाल सिरीसेना ने 2015 में पारित कराया था. अब राजपक्षे बंधु यह अड़चन दूर करना चाहते हैं. पुन: संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए. यह बात श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में रखी थी. कुल 225 सीटों में से 145 पर इस पार्टी को विजय मिली है. सहयोगी दलों के साथ उसने कुल 150 सीटों पर कब्जा किया है. इसलिए संविधान संशोधन कर राष्ट्रपति को अबाधित अधिकार देना उनके लिए संभव हो जाएगा. दक्षिण श्रीलंका के सिंहली बहुल क्षेत्र में सत्ताधारी श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के पक्ष में भारी मतदान हुआ जिसकी पहले से उम्मीद थी. इसकी वजह थी कि इस पार्टी ने सिंहली जनता में राष्ट्रवाद की भावना तीव्र कर दी थी. गत वर्ष श्रीलंका में इस्लामी आतंकवादियों द्वारा किए गए बम विस्फोटों के बाद वहां राष्ट्रवाद और मजबूत हो गया. ऐसी हालत में उत्तरी श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों का क्या होगा?

संबंध सुदृढ़ रखने होंगे

श्रीलंका की राजनीतिक हलचलों का भारत के दृष्टिकोण से विशेष महत्व है. चीन का दक्षिण एशिया में वर्चस्व बढ़ता चला जा रहा है. इसलिए भारत को सतर्क रहकर श्रीलंका के साथ संबंध सुदृढ़ रखने होंगे तथा इसके लिए निरंतर प्रयास करना होगा. मोदी सरकार निश्चित रूप से इस पर ध्यान देगी कि नेपाल के समान श्रीलंका भी चीन के बहकावे में न आने पाए. 80 के दशक में लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल इलम (लिट्टे) की समस्या बहुत बढ़ गई थी. श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जयवर्धने के अनुरोध पर भारत ने वहां शांति सेना भेजी थी. जयवर्धने ने कहा था कि यदि भारत ने शांति सेना नहीं भेजी तो वे पाकिस्तान या अमेरिका से ऐसा करने को कहेंगे. तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने श्रीलंका में शांति सेना भेजी लेकिन इसका परिणाम विपरीत निकला. लिट्टे भारत का दुश्मन बन गया और उसने राजीव गांधी की मानव बम से हत्या कर दी. श्रीलंका से भी संबंधों में तनाव आ गया था. आखिर श्रीलंका की सेना ने लिट्टे का सफाया कर दिया और लिट्टे नेता प्रभाकरण मारा गया.

चीन की खतरनाक चाल

इस समय चीन की चाल हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को घेरने की है. उसने श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह का विकास करने के लिए बहुत बड़ा कर्ज दिया है. इतनी रकम को वापस चुका पाना श्रीलंका के लिए संभव नहीं है. इसलिए उसके बदले में चीन वहां अपना नौसैनिक अड्डा बनाने का खुला इरादा रखता है. श्रीलंका में चीन की उपस्थिति केवल आर्थिक व व्यापारिक कारणों से नहीं है बल्कि इसके पीछे उसकी सामरिक रणनीति है. महिंदा राजपक्षे की चीन से मित्रता छुपी नहीं है. ऐसी स्थिति में भारत की प्राथमिकता होगी कि श्रीलंका को चीन की ओर ज्यादा झुकने न दे. भारत की आर्थिक शक्ति चीन जितनी नहीं है फिर भी वह श्रीलंका की कुछ खास परियोजनाओं में निवेश कर सकता है. भारत को श्रीलंका से राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध भी मजबूत करने होंगे.