यह कैसा लोकतंत्र है जहां हर समय कहीं न कहीं चुनाव या उपचुनाव का सिलसिला जारी रहता है! यह बात सही है कि किसी सांसद-विधायक के निधन से अथवा इस्तीफा देने से सीट खाली होने के कारण 6 माह के भीतर उपचुनाव कराना अनिवार्य हो जाता है. इस तरह देश हमेशा इलेक्शन मोड में बना रहता है. इससे धन व संसाधनों का अपव्यय होता है तथा सरकारी मशीनरी व सुरक्षाबलों पर शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व आ जाता है. इसका कोई व्यावहारिक हल खोजा जाना चाहिए कि कुछ ही अंतराल से होने वाले उपचुनाव को एक साथ करा लिया जाए.
चुनाव आयोग इस दिशा में सूझबूझ के साथ सार्थक पहल कर सकता है. बंगाल की भवानीपुर सीट पर हो रहे उपचुनाव के साथ ही इस राज्य की दिनहाता, सांतिपुर, खरमाहा व गोसावा की 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कराया जा सकता था लेकिन ऐसा न करते हुए सिर्फ ममता बनर्जी को घेरने के लिए अकेले भवानीपुर की सीट पर उपचुनाव घोषित किया गया. इससे स्पष्ट है कि स्वायत्त कहलाने वाला चुनाव आयोग केंद्र के इशारे पर काम करता है.
अब ठीक 1 माह अर्थात 30 अक्टूबर को 3 लोकसभा सीटों और 30 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कराया जाएगा. इसमें बंगाल की 4 सीटों के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, असम, कनार्टक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड की सीटों का समावेश है. आयोग का कहना है कि कोरोना, बाढ़, त्योहारों, सर्दी की स्थिति की समीक्षा करते हुए तथा राज्यों से फीडबैक के आधार पर उपचुनाव का शेड्यूल तैयार किया गया है.
स्वयं प्रधानमंत्री ने ‘एक देश – एक चुनाव’ जैसे विचार का समर्थन किया था परंतु इस दिशा में प्रगति नहीं हो पा रही है. ऐसा तभी संभव होगा जब जिन विधानसभाओं का कार्यकाल समाप्त होने में कुछ माह का समय शेष हो, वहां अन्य राज्यों के साथ ही चुनाव करा लिया जाए. 1967 के पहले के 3 आम चुनावों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन एक साथ हुआ करते थे. लेकिन फिर वह सिलसिला बिगड़ गया. अब प्राय: हर साल कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव हुआ करते हैं. राष्ट्रहित में इस समस्या का इलाज खोजा जाना चाहिए.