मराठा आरक्षण का मुद्दा नए सिरे से प्रयास की जरूरत

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    मराठा समाज को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बावजूद इस मुद्दे को लेकर भावनाएं तीव्र हैं. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इसे लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा है और राज्यपाल से भी भेंट की है. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व बाम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश दिलीप भोसले की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय समिति बनाई है. यह समिति सरकार को अपनी रिपोर्ट 31 मई तक सौंपेगी. केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि उन्होंने मराठा आरक्षण की मांग को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. राज्यपाल कोश्यारी को भी इसके लिए कोशिश करनी चाहिए.

    यह दलील दी जा रही है कि देश के सभी राज्यों पर समान मानदंड लागू होने चाहिए. तमिलनाडु ने कई वर्ष पहले 50 प्रतिशत आरक्षण की मर्यादा पार की लेकिन उस पर अंकुश नहीं लगाया गया. अन्य राज्यों ने भी इस सीमा को पार किया. केवल मराठा आरक्षण के मामले में कहा गया कि इंद्रा साहनी मामले में तय की गई आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा का पालन किया जाए. संसद में 102वां संविधान संशोधन विधेयक पेश करते समय केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा था कि राज्यों के आरक्षण के अधिकार खत्म करना केंद्र सरकार का उद्देश्य नहीं है. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन इस संविधान संशोधन के जरिए करते हुए केंद्र ने राज्यों के अधिकार कायम रखे थे. इतने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से राज्यों को सिर्फ आरक्षण की सिफारिश का अधिकार देते हुए कहा कि आरक्षण की अधिसूचना जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति का है. प्रश्न यह है कि क्या राज्य के अधिकार कम किए जा रहे हैं?

    केंद्र की सूची में भी समावेश हो

    इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने का आदेश दिया था. इसके मुताबिक महाराष्ट्र में 2006 में विशेष कानून बनाकर आयोग की स्थापना की गई. ओबीसी जाति की केंद्रीय व राज्य सूची अस्तित्व  में होने से इस वर्ग को केंद्र व राज्य की सरकार की नौकरियों में आरक्षण हासिल है. मराठा आरक्षण मामले में आए निर्णय के अनुसार राज्य ने कुछ जातियों के आरक्षण की सिफारिश की तो केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व केंद्र सरकार की स्वीकृति के बाद राष्ट्रपति अधिसूचना जारी कर सकते हैं. यदि राज्य की सूची के साथ ही केंद्र की सूची में भी संबंधित पिछड़े वर्ग का समावेश हो तो केंद्रीय नौकरियों में भी आरक्षण का लाभ देना पड़ेगा. क्या राज्य की पिछड़े वर्ग की सूची का केंद्र की सूची में समावेश किया जा सकता है?

    गायकवाड़ आयोग कहां चूक गया

    मराठा समाज मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर पिछड़ा वर्ग है. उसे अपना संघर्ष नए सिरे से प्रारंभ करना होगा. जिस गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट पर उसे आरक्षण दिया गया, वह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है. अब राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग नए सिरे से विचार कर सिफारिश भेजे तथा राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति से मंजूरी हासिल करे. यह रास्ता आसान नहीं है और इसमें समय भी लगेगा. गायकवाड़ आयोग ने इसके पहले के राष्ट्रीय व राज्य आयोग की प्रत्येक 3 रिपोर्ट का विचार नहीं किया. इन आयोगों ने मराठा समाज को प्रगति कर चुका बताया है. सरकारी नौकरियों के अलावा उच्च शिक्षा संस्थाओं, सहकारी संस्थाओं में भागीदारी तथा विधायक, मंत्री व मुख्यमंत्री जैसे पदों पर मराठा रहने से उन्हें पिछड़ा नहीं माना गया. कुछ लोगों के तरक्की करने से पूरे समाज को न्याय नहीं मिलता. मराठा समाज को आरक्षण देने का प्रश्न चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.