Maratha reservation
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महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)को बताया है कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीलिंग अथवा अधिकतम सीमा 30 वर्ष पहले इंद्रा साहनी केस (Indra Sawhney Case) का फैसला देते समय लागू की गई थी जिस पर अब पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है. इसकी वजह यह है कि आज 70 से 80 प्रतिशत आबादी पिछड़े वर्ग की है. महाराष्ट्र सरकार की यह दलील राज्य की सरकारी नौकरियों में 12 प्रतिशत मराठा कोटा(Maratha reservation)के मुद्दे को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से है, इसका कितना औचित्य है? आरक्षण का प्रावधान समाज के अत्यंत पिछड़े तथा अवसरों से वंचित लोगों का सशक्तिकरण करने के लिए अस्थायी तौर पर किया गया था. मूल रूप से आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए था लेकिन वह आज तक जारी है. इसके समर्थक कहते हैं कि केवल आर्थिक उत्थान ही पर्याप्त नहीं है, जब तक सामाजिक बराबरी नहीं आ जाती, आरक्षण जारी रहना ही चाहिए.

आरक्षण जाति आधारित है जिसमें उसी के आधार पर शिक्षा व नौकरियों का प्रावधान है. वास्तव में नौकरियां कितनी हैं और कितने लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है, यह बात अलग है. जिन्हें आरक्षण मिला है, उनका आर्थिक-सामाजिक स्तर सुधर जाने पर भी उनकी अगली पीढ़ियां आरक्षण का लाभ ले रही हैं. जब किसी प्रतिभाशाली छात्र को अच्छे अंकों के बावजूद एडमिशन या नौकरी नहीं मिलती तथा काफी कम अंक वाले को आरक्षण की वजह से यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है तो सामाजिक असंतोष पैदा होता है. यह लगता है कि प्रतिभा की कोई कद्र नहीं है. इस तरह आरक्षण प्रतिभा को पछाड़ता रहा है. फिर संविधान में दी गई बराबरी या समानता कहां रह गई? आरक्षण का अंधाधुंध विस्तार आधुनिक भारत तथा ‘सबका साथ, सबका विकास’ भावना के प्रतिकूल है. क्या आजादी के 7 दशक बाद भी लोगों को समान अवसर नहीं मिलना चाहिए? चयन में प्रतिभा या मेरिट को तरजीह नहीं देने से कितने ही प्रतिभाशाली युवा विदेश चले जाते हैं और उनकी क्षमताओं का लाभ देश को नहीं मिल पाता. यदि आरक्षण सचमुच कारगर होता तो उसे विस्तारित करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. यह सच है कि देश के अनेक राज्यों ने 50 प्रतिशत की सीलिंग से भी ज्यादा आरक्षण अपने यहां लागू किया है. सरकारें अपने यहां पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर पाईं इसलिए जाति आधारित कोटा की मांग तेजी से बढ़ी है तथा इसे लेकर आंदोलन भी हुए हैं. सरकार को सूझबूझ से इस समस्या का हल निकालना होगा.