मराठवाड़ा मुक्ति दिवस : देश का एक ज्वलंत इतिहास

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मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस  महाराष्ट्र राज्य Marathwada Mukti Sangram Din (Marathwada Liberation Day) का एक राजकीय त्योहार है, जो हर साल 17 सितंबर (17 September) को मनाया जाता है। इस दिन 1949 में मराठवाड़ा से निज़ाम (Nizam of Hyderabad) की सत्ता समाप्त हो गई थी और वह भारत का हिस्सा बन चुका था।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र तो हुआ था, लेकिन उस समय पूरा देश विभिन्न रियासतों में विभाजित था। उस समय करीब 565 रियासतों में से 562 रियासतों ने स्वतंत्र भारत में शामिल होने के लिए सहमति व्यक्त की थी, मगर हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ स्वतंत्र भारत में शामिल नहीं हुए।

हैदराबाद पर निजाम मीर उस्मान अली खान बहादुर नियामुद्दौला निजाम-उल-मुल्क असफजाह का शासन था। स्वामी रामानंद तीर्थ के नेतृत्व में पूरे हैदराबाद में मुक्ति संघर्ष शुरु हो गया। उस समय हैदराबाद की आबादी करीब 1 करोड़ 60 लाख थी। तब यह तेलंगाना, मराठवाड़ा और कर्नाटक का हिस्सा हुआ करता था। हैदराबाद मुक्ति युद्ध शुरू होने के बाद निज़ाम हैदराबाद के कमांडर कासिम रिज़वी ने नागरिकों पर अकथनीय अत्याचार शुरु कर दिए, जिससे दूसरी ओर यह मुक्ति संघर्ष और जोर से शुरु हो गया। हैदराबाद मुक्ति युद्ध का नेतृत्व स्वामी रामानंद तीर्थ, दिगम्बरराव बिंदू, गोविंदभाई श्रॉफ, रविनारायण रेड्डी, देवीसिंह चौहान, भाऊसाहेब वैशम्पायन, शंकर सिंह नाइक, विजयेंद्र काबरा, बाबासाहेब परांजपे और उन जैसे अनेक भारत राष्ट्रवादियों ने किया एवं और भी कई स्वतंत्रता सेनानी अपनी जान की परवाह किए बिना इस संघर्ष में आगे आए।

इस मुक्ति संग्राम में श्रीधर वर्तक, जानकी लालजी राठी, शंकरराव जाधव, जालना के जन्नारदान मामा, किशन सिंह राजपूत, गोविंदराव पानसरे, बहराजी बाप्टार, राजाभाऊ वकड़, विश्वनाथ भिसे, जयंतराव पाटिल और अन्य लोगों को शहादत मिली। तेरह सितंबर 1948 को पुलिस की कार्रवाई शुरू हुई। निज़ाम हैदराबाद आत्मसमर्पण नहीं कर रहा था और नागरिकों पर उसके अत्याचार बढ़ गए थे, तब सोलापुर से सेना के प्रमुखों ने प्रवेश किया और तुलजापुर, परभणी से मनिगढ़, कनेरगाँव, विजयवाड़ा तक उससे मुक्त कर लिया गया। चालीसगांव से एक टुकड़ी ने कन्नड़, दौलताबाद और जालना शहर पर कब्जा कर लिया। पंद्रह सितंबर को सेना ने औरंगाबाद फतह किया। निजामी की सेना पीछे हटने लगी। निज़ाम हैदराबाद के सेना प्रमुख जान अल इदगीस ने 17 सितंबर 1948 को आत्मसमर्पण कर दिया और हैदराबाद मुक्ति संघर्ष सफल हुआ। मराठवाड़ा के लोग हैदराबाद रियासत के अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ लड़ाई में सफल रहे।