सिंधिया परिवार के जिंदगी भर दोनों हाथों में लड्डू

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सिंधिया और सत्ता का साथ पुराना है. ब्रिटिश शासनकाल में ग्वालियर का यह राजघराना अंग्रेजी हुकूमत के प्रति निष्ठावान रहा. यहां तक कि इस घराने के एक शासक का नाम जार्ज जिवाजीराव सिंधिया रखा गया था. अंग्रेजों के प्रति स्वामिभक्ति दिखाने का यह नायाब नमूना था. जब 1857 के गदर के समय नानासाहब पेशवा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जैसे महान देशभक्त ईस्ट इंडिया कंपनी की फौजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, तब ग्वालियर राजघराने ने झांसी की रानी का साथ न देकर अंग्रेजों की मदद की थी. यह इस राजघराने का एक कलंकित अध्याय है. यदि उस समय लक्ष्मीबाई को ग्वालियर राजघराने की शक्तिशाली फौज की मदद मिल जाती तो अंग्रेजों के पैर उखड़ जाते लेकिन होनी को यह मंजूर नहीं था. अब मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार रैलियां कर रहे हैं और कांग्रेस पर जमकर निशाना साध रहे हैं. वे हर प्रकार से बीजेपी से अपनी निकटता का बखान करने में लगे हैं.

BJP को बताया पुराना घर

ज्योतिरादित्य सिंधिया(Jyotiraditya scindia)ने कहा कि बीजेपी एक तरह से मेरे लिए पुराना घर भी है क्योंकि मेरी दादी स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया द्वारा बीजेपी स्थापित की गई थी. मेरे पिता माधवराव सिंधिया की शुरुआत जनसंघ से हुई थी. इस तरह बहुत से लोगों से पुराना संबंध भी है. मैं नए घर में आया जरूर हूं लेकिन रिश्ता पुराना है. इसके अलावा नए संबंध अभी और बन रहे हैं. पिछले 6-7 महीनों में मेरी कोशिश यही रही है कि धरातल और जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ संबंध बना सकूं. कांग्रेस को उसकी करनी का जवाब 3 नवंबर को दिया जाएगा.

अवसरों को हमेशा भुनाते रहे

सिंधिया परिवार के जिंदगी भर दोनों हाथों में लड्डू रहे. वे बीजेपी और कांग्रेस दोनों का सत्तासुख भोगते रहे. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के वरदहस्त से मध्यप्रदेश में जनसंघ के जमाने में वीरेंद्रकुमार सकलेचा, कैलाश जोशी और सुंदरलाल पटवा की सरकारें बनीं. राजमाता ने मध्यप्रदेश की डीपी मिश्रा की कांग्रेस सरकार गिराने के लिए कांग्रेस में फूट डलवाकर विंध्यप्रदेश के नेता कैप्टन अवधेशप्रताप सिंह के बेटे गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में संयुक्त विधायक दल (संविद) बनाया. मिश्रा की सरकार अल्पमत में आने से गिर गई और वहां संविद सरकार बन गई. इस सत्ता परिवर्तन में धनबल की बड़ी भूमिका थी. इमर्जेन्सी के समय राजमाता जेल में थीं लेकिन माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए 1984 के चुनाव में सहानुभूति लहर के दौरान माधवराव सिंधिया ने बीजेपी के दिग्गज नेता अटलबिहारी वाजपेयी को हराया था. माधवराव राजीव गांधी के करीबी बने रहे जबकि उनकी मां विजयाराजे सिंधिया, बहन वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे बीजेपी में रहीं. जनसंघ और फिर बीजेपी की स्थापना में राजमाता विजयाराजे की प्रमुख भूमिका रही थी.

कमलनाथ व दिग्विजय के कारण कांग्रेस छोड़ी

ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद न मुख्यमंत्री पद मिला, न उपमुख्यमंत्री पद. कमलनाथ को अनुभवी मानते हुए मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद कमलनाथ व दिग्विजय सिंह लगातार ज्योतिरादित्य की उपेक्षा करते रहे. ज्योतिरादित्य को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी नहीं बनाया गया. यूपी के चुनाव में उन्हें पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन वहां भी वे कुछ नहीं कर पाए और कांग्रेस बुरी तरह हारी. राहुल गांधी भी अमेठी का चुनाव हार गए लेकिन दक्षिण भारत की वायनाड सीट से जीतने में कामयाब रहे. ज्योतिरादित्य हर तरफ से हताश होने के बाद बीजेपी में चले गए जिसे वे अपना पुराना घर बता रहे हैं. राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने पाला बदल लिया. कांग्रेस में रहते हुए बीजेपी की तीखी आलोचना करने वाले ज्योतिरादित्य अब बीजेपी के गुण गा रहे हैं. यही है उनकी राजनीति!