आज है ‘इंजीनियर्स डे’, डॉ. विश्वेश्वरैया की याद में मनाया जाता है यह दिन

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आज पुरे देश में “इंजीनियर्स डे” मनाया जा रहा है, इसे अभियंता दिवस के रूप में भी जाना जाता है। महान भारतीय इंजीनियर भारत रत्न सर एम विश्वेश्वरय्या  (M Visvesvaraya) के याद में भारत में हर साल 15 सितंबर को ‘इंजीनियर डे’ ( Engineer’s Day) मनाया जाता है। एम विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितंबर 1860 को मैसूर (कर्नाटक) में हुआ था।  विश्वेश्वरैया भारतीय सिविल इंजीनियर, विद्वान और राजनेता थे। विश्वेश्वरय्या के प्रयासों से ही कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण हो पाया। उनके प्रयासों के कारण ही मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। बता दें कि, इंजीनियर्स का देश के विकास में रचनात्मक बदलाव का बड़ा योगदान रहा है। 

सर एम विश्वेश्वरय्या से जुड़ी कुछ खास बातें

विश्वेश्वरैया ने 1883 में पूना के साइंस कॉलेज से इंजीनियरिंग में स्नातक किया, जिसके कुछ दिन बाद ही उन्हें सहायक इंजीनियर पद पर सरकारी नौकरी मिल गई थी। वे मैसूर के 19वें दीवान थे और 1912 से 1918 तक रहे। विश्वेश्वरैया ने अपने काम से अलग पहचान बनाई, जिसके कारण उन्हें मॉर्डन मैसूर का पिता कहा जाता है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस मौके पर स्टूडेंट्स को उनके अचीवमेंट्स पर अवॉर्ड दिए जाते हैं। 1955 में विश्वेश्वरैया जी को भारत का सबसे बड़ा सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।

विश्वेश्वरैया को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद  बेंगलुरु में ‘सेंट्रल कॉलेज’ में दाखिला लिया। फीस जमा करने के पैसे ना होने के कारण उन्होंने ट्यूशन लिया और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1881 में बीए की पढ़ाई के बाद स्थानीय सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के ‘साइंस कॉलेज’ में दाखिला लिया। 1883 की एल.सी.ई. व एफ.सी.ई. (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया। उनकी योग्यता को देखते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया। जिस समय उन्होंने इंजीनियरिंग में अपने करियर की शुरुआत की, तब भारत में ब्रिटिश शासन था।

विश्वेश्वरैया ने अपनी योग्यता से प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनके सामने बड़े-बड़े अंग्रेज़ इंजीनियरों ने भी घुटने टेक दिए थे। प्राकृतिक जल स्रोत्रों से घर-घर में पानी पहुंचाने की व्यवस्था और गंदे पानी की निकासी के लिए नाली-नालों की समुचित व्यवस्था उन्होंने ही की। 1932 में ‘कृष्ण राजा सागर’ बांध के निर्माण परियोजना में वो चीफ इंजीनियर की भूमिका में थे। ‘कृष्ण राज सागर’ बांध का निर्माण आसान नहीं था क्योंकि तब देश में सीमेंट तैयार नहीं होता था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इंजीनियर्स के साथ मिलकर ‘मोर्टार’ तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। उन्होंने बांध बनवाया और आज भी यह बांध कर्नाटक में मौजूद है। यह बांध उस समय का एशिया का सबसे बड़ा बांध कहा जाता था। इस बांध से कावेरी, हेमावती और लक्ष्मण तीर्थ नदियां आपस में मिलती है। 1955 में विश्वेश्वरैया को सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।