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    • माहुर का ‘उपशक्तिपीठ’ है मंगरुल की मंगला माता  (पेज 4-बाटम मस्ट)  

    धामणगांव रेलवे. तहसील के मंगरुल दस्तगीर में कई भव्य-दिव्य मंदिर है. संत महात्मा के चरणों से पुणित गांव के पश्चिम दिशा में एक किमी अंतर पर पूर्वाभिमुख भगवती मंगला माता का प्राचीन जागृत मंदिर है. गांव को संतों की भूमि और मंदिर का गांव कहा जाता है. संत लहानुजी महाराज व संत गणपति महाराज की यह जन्म स्थली है. 

    प्रति वर्ष होता है कूलाचार का उत्सव 

    श्री. मंगला माता के बारे में कहा जाता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व एक बुजुर्ग भक्त नवरात्रि में माहुर स्थित रेणुका माता के दर्शन के लिए जा रहा था, लेकिन वृध्दावस्था के कारण नहीं जा पाने से बड़ा ही दुखी हो गया था. इस दौरान कोई सद्पुरुष इस मार्ग से जा रहा था. तब श्री रेणूका माता का मुखौटा मंगलधाम परिसर में रह गया. यब बात ध्यान में आते ही यह दस्पुरुष मंगलधाम परिसर में लौटकर आया. लेकिन उसे साक्षात्कार हुआ कि अब मैं वही रहूंगी. वह प्रगट दिन चैत्र शु. चतुर्दशी का था. तब से आज भी चैत्र शु. 14 को यहां प्रतिवर्ष कूलाचार का उत्सव होता है. 

    मन्नत फेड़ने का स्थल 

    मंगला माता को भवानी माता भी कहा जाता है. यह पूज्य स्थल माहुर क्षेत्र का ‘उपशक्तिपीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है. जिससे माहुर की श्री रेणूकादेवी से किया गया संकल्प मंगलामाता में पूरा किया जाता है. श्री मंगला माता अनेक परिवार की कुलदेवी है. बीच में कुछ समय यह स्थल दुर्लक्षित रहा. वर्ष 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी मंगरुल में संघ शाखा की निरीक्षण करने दौरे पर आए थे. इसी दौरान गोलवकर गुरुजी ‘उपशक्तिपीठ’ में दर्शन के लिए पहुंचे. 

    उपासना से मंगल ग्रह के दोष से मुक्ति  

    तब उन्होंने यह स्थल जागरूक होने की बात कही. स्वामी शिलानंद सरस्वती संन्यास लेने के बाद साधना करने के लिए माहुर से जगह की तलाश करते हुए मंगरुल पहुंचे. देवी भागवत के नवम स्कंध में ‘मंगलचंडी’ नाम से श्री मंगलामाता प्रमुख रूप से जिक्र है. प्रचिति है कि  भक्तों का मंगल करने के लिए तत्पर ‘मंगलचंडी’ पुरातन काल में मंगल नाम के राजा ने प्रकृति अंश सावित्रीदेवी की उपासना की. राजा के अनुरोध पर देवी सावित्री ही उनके घर कन्या के रूप में प्रगट हुई. इसीलिए उनका नाम मंगलादेवी रखा गया. ‘मंगलांधयति इति मंगला’ जन्म-मृत्यु रूप दुःख हरती है. यह मंगलादेवी मंगल ग्रह की अधिष्ठात्री माना जाती है. उसकी उपासना से मंगल ग्रह का दोष समाप्त होता है. 

    भारत मे केवल दो जगह है मंगलादेवी का वास 

    मंगला देवी की उपासना से  विवाह आदि कार्य जल्द होने का अनेक भक्तों को अनुभव है. मंगला गौरी का व्रत इसी देवी के नाम से किया जाता है. मंगलादेवी का स्थान भारत में केवल दो जगह है. एक काशी क्षेत्र मंगलागौरी व दूसरा मंगरुल दस्तगीर. मंगरुल के मंगला माता देवस्थान के व्यवस्थापन अध्यक्ष प्रभाकर खानजोडे,उपाध्यक्ष रवींद्र देशपांडे, राजेश सोनी,जुगलकिशोर मुंदड़ा, दिवाकर देशपांडे,मोरेश्वर फडणवीस, सुदाम जांबुरे,पद्माकर वाणी,सुभाष ब्राम्हणकर सह मुख्य पुजारी मोहन देव, विवेक देव, भूषण पिंपले व देवी के परमभक्त वैभव पोद्दार देवस्थान का कामकाज देखते है.