प्रचंड गुट से टकराव के बीच संसद भंग, ओली का जबरदस्त पैंतरा

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नेपाल में अपने नेतृत्व के खिलाफ बढ़ते असंतोष और सत्तारूढ़ पार्टी में गुटों के टकराव को देखते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (K P Sharma Oli) ने अचानक संसद भंग कर दी. उनके इस फैसले पर राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी (Bidya Devi Bhandari) ने मुहर लगा दी. इससे नेपाल में मई 2021 में नए चुनाव का रास्ता साफ हो गया. इस तरह नेपाल में तय समय से 1 वर्ष पहले चुनाव होंगे. ओली के लिए सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी चेयरमैन तथा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ (Pushpa Kamal Dahal “Prachanda”) बड़ी चुनौती बन गए थे. नेपाल सरकार के 7 मंत्री प्रचंड के निकटवर्ती थे और एक पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने ओली के कदम का विरोध करते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस दबाव की वजह से ओली ने संसद भंग करने का कदम उठाया. नेपाल में हुए राजनीतिक घटनाक्रम से भारत और चीन दोनों ही सतर्क हो गए हैं. वास्तव में चीन से अपनी अधिक से अधिक निकटता दिखाने के लिए ओली और प्रचंड में होड़ लगी हुई थी.

भारत के लिए अनुकूल नहीं थे ओली

ओली के प्रधानमंत्री रहते बहुत सी भारत विरोधी बातें हुईं. नेपाल की संसद में संविधान संशोधन प्रस्ताव लाकर कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल का इलाका घोषित किया गया. इन इलाकों को नेपाल के मानचित्र में दिखाया गया. भारत ने इस कदम पर सख्त एतराज जताया था. गत माह चीन के मंत्री ने नेपाल यात्रा की और नेपाल की सुरक्षा व क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए पूरा समर्थन व सहयोग देने का एलान किया. नेपाल की स्थितियों पर कड़ी नजर रखते हुए भारत ने रॉ के प्रमुख सामंत गोयल को भेजा जिन्होंने ओली और प्रचंड से भेंट कर हालात का जायजा लिया. भारतीय सेना प्रमुख जनरल नरवणे भी काठमांडू जाकर ओली से मिले थे. नेपाल को सतर्क किया गया था कि वह चीन के बहकावे में न आए और जिस तरह श्रीलंका ने चीन की तुलना में भारत से निकट संबंधों को तरजीह दी, वैसा ही नेपाल भी करे. ऐसा माना जा रहा है कि नेपाल का अगला प्रधानमंत्री ओली की तुलना में भारत के लिए अनुकूल हो सकता है.

चीन को झटका लगा

ओली सरकार के पतन से चीन को झटका लगा. नेपाल को अपने निकट लाने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने गत वर्ष काठमांडू की यात्रा की थी. ओली सरकार ने चीन से मित्रता दिखाने के लिए अपने यहां के लोगों के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से प्रशिक्षण शिविर करवाया था. चीन ने वादा किया था कि वह रेल लाइन से नेपाल को जोड़ेगा लेकिन कई वर्ष बीत जाने पर भी उसने वादा पूरा नहीं किया. ओली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप लगा था कि उन्होंने कोरोना वायरस को रोकने के लिए चीन से मंगवाए गए पीपीई किट की खरीद में भ्रष्टाचार किया. भ्रष्टाचार को खत्म करने और चीन के साथ दोस्ती मजबूत करने के वादे के साथ सत्ता में आए ओली खुद ही चीनी कंपनी के साथ भ्रष्टाचार के अपराधों में घिर गए. कोरोना संकट में भी जनता को लूटे जाने के आरोप की नेपाल की भ्रष्टाचार निरोधक संस्था जांच कर रही है.

अदालत में चुनौती

नेपाल के 2015 में बने संविधान में संसद भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए ओली के इस कदम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है. यदि नेपाल का सुप्रीम कोर्ट ओली के कदम के खिलाफ फैसला नहीं देता तो उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं है. उन्होंने संसद भंग करने का फैसला इसलिए भी किया क्योंकि प्रचंड, माधव कुमार नेपाल व झालानाथ खनक का गुट ओली पर कुशासन व तानाशाही का आरोप लगाकर उनसे इस्तीफे की मांग कर रहा था.