मगरमच्छ को दे दी मात, कश्मीरी पंडितों पर फारूक के घड़ियाली आंसू

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ नेताओं का कैसा दोहरा चरित्र होता है, इसकी मिसाल है जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला! अब्दुल्ला परिवार की 3 पीढ़ियों ने इस राज्य पर हुकूमत की है लेकिन उनकी सत्ता की लालसा छूटती नहीं है. अब फारूक ने एक नया पैंतरा दिखाया है. वे कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है. उन्होंने 1990 में कश्मीरी हिंदुओं के बड़े पैमाने पर घाटी से पलायन की जांच सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज से कराने की मांग की है.’’ हमने कहा, ‘‘यह फारूक का पाखंड है. कश्मीरी पंडितों के पलायन के 30 वर्ष बाद उन्हें यह मुद्दा याद आया? इतने वर्षों तक क्या फारूक सो रहे थे? क्या उस समय वे होश में नहीं थे जब पाकिस्तान और हिजबुल के कट्टरपंथियों के इशारे पर कश्मीरी पंडितों के घर और संपत्ति पर मुस्लिमों ने जबरन कब्जा कर लिया था और कहा था कि जान बचाना है तो भाग जाओ और अपनी बहन, बीवी और बेटी हमारे लिए छोड़ जाओ? उस समय बीजेपी नेता टीकालाल टपलू, हाईकोर्ट जज बालकृष्ण गुर्टू, पं. प्रेमनाथ भट, साहित्यकार सर्वानंद प्रेमी, नर्स सरला भट सहित अनेक लोगों की निर्मम हत्या हुई थी.

खून-खराबे, लूटपाट और धमकी के उस भयानक माहौल में लाखों कश्मीरी पंडित अपनी जमीन-जायदाद, मकान-दूकान छोड़कर परिवार सहित भागने तथा दिल्ली व अन्य स्थानों के शरणार्थी शिविरों में जैसे-तैसे रहने को मजबूर हुए. इस त्रासदी को न तो केंद्र की कांग्रेस सरकार ने गंभीरता से लिया, न मानवाधिकार आयोग ने ध्यान दिया. इतने लोग लुट-पिटकर बेदखल हुए लेकिन तब फारूक अब्दुल्ला के कानों पर जूं नहीं रेंगी. अब वे कश्मीरी पंडितों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने की नौटंकी कर रहे हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘फारूक सारा दोष तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन पर मढ़ रहे हैं. उनका कहना है कि जगमोहन 3 महीने में वापसी का झूठा वादा कर पंडितों को घाटी से बाहर ले गए थे. जगमोहन ने जान बचाकर भागने वाले पंडितों की सुरक्षा व यात्रा की व्यवस्था की थी. उनके विरुद्ध जांच की मांग करने वाले फारूक खुद जांच के घेरे में आ जाएंगे. फारूक का दावा है कि 1947 से अब तक कश्मीरी पंडितों के लिए मुसलमान हर मौके पर खड़े रहे हैं. कश्मीर तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक हिंदू वापस नहीं लौटेंगे और शांति से फिर एक साथ नहीं रहेंगे.’’ हमने कहा, ‘‘यह सब कहने की बातें हैं.

यदि पाकिस्तान ने कश्मीरी पंडितों को भगाने की साजिश रची थी तो कश्मीर घाटी की मुस्लिम आबादी ने उसका फरमान क्यों माना? क्यों अपने हिंदू पड़ोसियों के घर व संपत्ति पर कब्जा किया? पंडितों में इतना भय व्याप्त है कि सरकार के कहने पर भी वे वापस लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. यदि वे लौटेंगे भी तो अपने लिए अलग सुरक्षायुक्त कॉलोनी चाहेंगे. इतने वर्षों तक फारूक व उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती को कभी भी पंडितों की याद नहीं आई. अब फारूक बनावटी प्रेम दिखा रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार की आतंकियों के प्रति सख्ती और धारा 370 समाप्त किए जाने के बाद से फारूक, उमर, महबूबा व हुर्रियत नेताओं की दाल नहीं गल रही है.