लेडीज की गपशप अपरंपार, लंबी नींद का खुमार घरेलू काम का भी भार

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office) के टाइम यूज सर्वे  (Survey) के मुताबिक देश के शहरी व ग्रामीण इलाकों की महिलाएं 24 घंटे में 552 मिनट नींद लेती हैं. इस पर आपकी क्या राय है?’’ हमने कहा, ‘‘जरा सोचिए कि महिलाओं पर कितना भार रहता है! घर का कामकाज, बच्चों की देखभाल, पति का ख्याल, बुजुर्गों की सेवा. चाहे होममेकर हो या नौकरीपेशा, जब इतनी मेहनत करेंगी तो नींद लेंगी ही. जब सोई हुई हीरोइन को हीरो जगाता है तो वह गाने लगती है- सोई थी मैं, कहीं खोई थी मैं, कंकरिया मार के जगाया, कल तू मेरे सपने में आया, बालमा तू बड़ा वो है!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जो हीरो संवेदनशील होता है, वह कहता है- राम करे ऐसा हो जाए, मेरी निंदिया तोहे मिल जाए, मैं जागूं, तू सो जाए. वैसे चैन की नींद लेना भी बहुत बड़ी बात है.

जिसे गाढ़ी नींद लगती है, उसके बारे में कहा जाता है- देखो घोड़े बेचकर सो रहा है. चिंताग्रस्त व्यक्ति की नींद हराम हो जाती है. बड़े-बड़े उद्योगपति नींद की गोली लेने के बाद भी सो नहीं पाते जबकि मेहनतकश किसान-मजदूर गहरी नींद सोते हैं. जहां तक महिलाओं की लंबी नींद की बात है, वे रात की अधूरी नींद (Indians spent time)उस समय दोपहर में पूरी कर लेती है जब पति आफिस और बच्चे स्कूल गए होते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘आप लॉकडाउन के पहले की बात कर रहे हैं. इस समय जब सभी घर के भीतर हैं तो नाश्ता-चाय-खाना बनाने से फुरसत ही कहां है! फिर भी सोने के संबंध में कहा गया है- नींद न जाने टूटी खाट, भूख न जाने बासी भात!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘जिस लड़की को बचपन में लोरी सुनाई गई हो- सो जा राजकुमारी सो जा, वह भरपूर सोने की आदत डाल लेती है. उसे नींद में सोना और पहनने के लिए सोना अच्छा लगता है. कहीं-कहीं अपवाद भी है. राजकपूर की पुरानी फिल्म ‘बरसात’ में नरगिस नींद न आने की शिकायत करते हुए गाती है- मेरी आंखों में बस गया कोई रे, मोहे नींद न आए, मैं का करूं.

जब फिल्मी हीरोइन नींद से जागती है तो बड़े मोहक तरीके से अंगड़ाई लेती है.’’ हमने कहा, ‘‘552 मिनट का मतलब है पूरे 9 घंटे 12 मिनट सोना! इतनी देर सोने से कितना समय बर्बाद होता है. जो ज्यादा सोता है, उससे कहना चाहिए- जागो सोने वालों, सुनो मेरी कहानी. किसी को सचेत करने के लिए सुनाया जाता था- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है, जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है. जहूर बख्श की कविता थी- उठो बालकों हुआ सबेरा, चिड़ियों ने तज दिया बसेरा. स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था- उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत. उठो, जागो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो. देर तक सोने पर पछताना नहीं चाहिए क्योंकि जब जागे तभी सबेरा!’’