कमान को ज्यादा न तान राजनीति और आत्मसम्मान!

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं का मान-सम्मान और स्वाभिमान बनाए रखने का आश्वासन दिया है. इस पर आपकी क्या राय है?’’ हमने कहा, ‘‘राजनीति में आत्मसम्मान कैसा? वहां तो बेशर्मी की चादर ओढ़कर जाना पड़ता है. जिसमें सब कुछ झेलने का लचीलापन है और जो समझौतापरस्त होता है, वही राजनीति की लहर के थपेड़ों में टिक पाता है. जिसकी रीढ़ की हड्डी सीधी तनी हो और जिसको झुकने की बजाय टूटना पसंद हो, ऐसा स्वाभिमानी व्यक्ति राजनीति में चल ही नहीं सकता. वहां एडजस्टमेंट वाले पालतू किस्म के नेता-कार्यकर्ता का ही गुजारा संभव है जिनके गले में अपने नेता का पट्टा बंधा हो.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आप बड़ी तीखी और चुभने वाली बात कर रहे हैं. आपको मालूम होना चाहिए कि राजस्थान के बागी पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी फ्लाइट वापस कांग्रेस के रनवे पर लैंड कर दी. राहुल और प्रियंका से मिलने के बाद पायलट ने कहा कि पार्टी हमें पद देती है तो वापस ले भी सकती है. मुझे किसी भी पद की कोई इच्छा नहीं है लेकिन मैं चाहता था कि हमारा स्वाभिमान बरकरार रहे.’’ हमने कहा, ‘‘जब पद की इच्छा नहीं थी तो क्या आलू छीलने या घास खोदने के लिए राजनीति में आए थे? रही बात स्वाभिमान की, तो हमने एक पानठेले पर लिखा हुआ देखा- ‘10 हजार रुपए की नौकरी से आजादी की शान अच्छी है, स्वाभिमान रखना कायम तो पान की दुकान अच्छी है!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम पान की नहीं, राजनीति की दुकान की बात कर रहे हैं. राजनीति में व्यक्ति को समय और परिस्थितियां देखकर फ्लेक्सिबल होना पड़ता है. उसे कमान वहीं तक तानना चाहिए कि टूटने न पाए! बड़े-बड़े तने हुए वृक्ष आंधी-तूफान में धराशायी हो जाते हैं जबकि हवा के सामने झुक जाने वाली घास का कुछ भी नहीं बिगड़ता.

जो टैक्टफुल पॉलिटीशियन रहता है, वह कहीं न कहीं मन मारकर एडजस्ट कर लेता है. वह अपनी बगावत को दफन कर देता है और फिर भी कहता है कि मेरा स्वाभिमान कायम है. राजनीति में दो कदम आगे बढ़ने पर कभी चार कदम पीछे भी हटना पड़ता है. हाथ में पत्ते अच्छे नहीं हों तो क्विट कर जाना ही अच्छा होता है. पायलट ने ठीक किया जो मान गए. ज्यादा अकड़ने में फायदा नहीं था. प्रियंका की पहल के कारण राजस्थान सरकार बच गई. पायलट को पार्टी कोई और जिम्मेदारी देकर संतुष्ट कर देगी.’’ हमने कहा, ‘‘राजनीति में सफल होना है तो आत्मसम्मान जेब में रखो और मौकापरस्ती की सीढ़ी से ऊपर चढ़ते चले जाओ. जहां गुर्राने से कुछ नहीं होता, वहां मिमियाने में संकोच कैसा! पायलट की बगावत पानी के बुलबुले की तरह फूट गई.’