निर्मला की प्रेम पाती, बजट अंधों का हाथी या विकास का साथी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ अंधों ने एक हाथी को छूकर महसूस किया कि वह कैसा है. एक ने उसका पेट छूकर कहा कि यह मोटी दीवार जैसा है. किसी ने सूंड छूकर कहा कि कोई मोटा अजगर लगता है. एक अंधे ने हाथी के पैर छूकर कहा कि यह खम्बा लगता है. किसी को हाथी के कान छूने के बाद लगा कि यह अनाज फटकने वाले सूप की तरह है. बिल्कुल यही बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट के साथ है. 

    इसे कोई आशावादी, विकास को बढ़ावा देने वाला, दूरदर्शितापूर्ण या विजनरी बता रहा है तो कोई इसे हताशाजनक, नकारात्मक, मध्यम वर्ग को कुछ भी नहीं देनेवाला कह रहा है. बीजेपी बजट को लेकर बल्ले-बल्ले कर रही है जबकि विपक्ष को इसमें खोट दिखाई देता है. कोई इसमें आत्मनिर्भर भारत की झलक देख रहा है और कह रहा है- रूप तेरा ऐसा दर्पण में ना समाए.’’ 

    हमने कहा, ‘‘जिन लोगों को बजट की बारीकियां नहीं समझतीं, वे यही कहते हैं कि इसमें क्या सस्ता हुआ है? टैक्स में रियायत दी गई? इनकम टैक्स की लिमिट क्यों नहीं बढ़ाई गई? विकास की बात करते हैं लेकिन रोजगार का क्या हुआ? 5 राज्यों के चुनाव सामने हैं लेकिन बजट में कुछ भी लोकलुभावन, मन हर्षावन नहीं है.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मिडिल क्लास मानसिकता छोड़कर बजट को उद्योगपतियों के प्रोग्रेसिव लेन्स वाले चश्मे से देखो जो कि बजट के असली पारखी होते हैं और देश का ग्रोथ इंजिन चलाते हैं. कुमारमंगलम बिडला की राय में यह बजट 8 प्रतिशत विकास दर का आधार रखेगा. इससे नया निवेश आएगा. एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने इसे परिपक्व और भविष्य पर निगाह रखनेवाला बजट बताया है. 

    फिक्की के अध्यक्ष संजीव मेहता की राय में इस बजट से व्यवसाय करने की लागत घटेगी, उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, निजी उपभोग बढ़ेगा. भारती एंटरप्राइजेस के चेयरमैन सुनील मित्तल के मुताबिक विश्व स्तर के डिजिटल इन्फ्रा विकास के साथ समावेशी विकास होगा.’’ हमने कहा, ‘‘आम जनता को खुश करने के लिए 2023-24 के बजट का इंतजार कीजिए. तब लोकसभा चुनाव देखते हुए सरकार लोकलुभावन बजट पेश करेगी.’’