पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, क्या जमाना आ गया कि बहू अपने मन का करती है और ससुर के समझाने पर भी नहीं समझती! बड़ों का कुछ तो लिहाज करना चाहिए. पहले सुशील आज्ञाकारी बहू सास-ससुर का कहना मानती थी और परिवार को लेकर चलती थी. अब बहू तन गई और अपने मन की हो गई.’’
हमने कहा, ‘‘आप किस बहू का जिक्र कर रहे हैं जो अपने ससुर की जरा भी फिक्र नहीं करती? वैसे किसी के घरेलू पचड़े में पड़ना समझदारी नहीं है. घर का झगड़ा-टंटा घरवालों को ही सुलझाने दीजिए. आप फैमिली कोर्ट का काम मत कीजिए.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मुलायमसिंह यादव की बहू अपर्णा यादव ने ससुर की एक नहीं सुनी और सपा छोड़कर भाजपा में चली गई. यह भी नहीं सोचा कि समाजवादी ससुर के दिल पर क्या बीती होगी! यादव परिवार में देखते ही देखते फूट पड़ गई.’’
हमने कहा, ‘‘यादवों में एकता कब थी? महाभारत के युद्ध में सात्यकी और भूरिश्रवा जैसे यादव वीर एक दूसरे से लड़े थे. सात्यकी पांडवों के पक्ष में थे और भूरिश्रवा कौरवों के साथ थे. बाद में द्वारका से नौकाओं पर सवार होकर प्रभास द्वीप में पिकनिक मनाने गए यादव कुल के लोग आपस में लड़कर स्वर्ग सिधार गए थे. कृष्ण और बलराम के समझाने पर भी वे नहीं माने थे.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम द्वारका के नहीं, यूपी के यादवों की बात कर रहे हैं. मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना सिंह के बेटे का नाम प्रतीक है. अपर्णा प्रतीक की महत्वाकांक्षी पत्नी हैं. सपा में अखिलेश यादव का वर्चस्व है, इसलिए अपर्णा ने भाजपा की राह पकड़ ली.’’
हमने कहा, ‘‘आजकल की बहुएं 50-60 साल पहले की तरह चूल्हा-चक्की के मामले में पक्की नहीं रहतीं, बल्कि घर की दहलीज से बाहर निकलकर अपनी पसंद के क्षेत्र में जमीन तलाशती हैं. वे शिक्षा, उद्योग, प्रशासन या राजनीति में अवसर खोजती हैं. जॉब करके अपने स्वतंत्र अस्तित्व और खुद्दारी का परिचय देती हैं. मुलायम की बहू ने जो किया, अच्छा किया. वैसे भी 18 वर्ष की उम्र होने के बाद वोट डालने से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस लेने का सभी को अधिकार है. यादव परिवार को अपनी बहू के फैसले का सम्मान करना चाहिए.’’