दोपहर की नींद लेने पर ध्यान, राजकोटवासी कब करेंगे मतदान

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, गुजरात विधानसभा चुनाव में राजकोट ऐसा शहर है जहां सभी राजनीतिक पार्टियां इस बात को लेकर परेशान हैं कि दोपहर 1 से 4 बचे तक वोटर मतदान करने आएंगे या नहीं. इसका वोटिंग पर असर पड़ सकता है.’’

    हमने कहा, ‘‘यह व्यर्थ की आशंका है. लोकतंत्र से प्रेम रखनेवाला हर नागरिक अपने मताधिकार का उपयोग करता है. पठानकोट हो या राजकोट, कौन सा फर्क पड़ना है. ठंड पड़ेगी तो वोटर स्वेटर या कोट पहनकर आएगा लेकिन वोट डालेगा जरूर!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपको राजकोटवासियों की आदत नहीं मालूम! वहां के लोग दोपहर 1 बजे से 3-4 बजे तक अनिवार्य रूप से सोते हैं. उनकी इस अजीबोगरीब आरामतलब जीवन शैली से पार्टियां परेशान हैं. चुनाव प्रचार में लगे नेताओं की नींद उड़ गई है.’’

    हमने कहा, ‘‘क्या रात का सोना पर्याप्त नहीं है जो दिन में भी लोग 2-3 घंटे सोए रहते हैं! इतना आलसी होना अच्छी बात नहीं है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह परंपरा काफी पुरानी है. पुराने जमाने में ग्राहक दूर-दूर से रोजमर्रा का सामान खरीदने सुबह के समय राजकोट पहुंचते थे. आवागमन का साधन नहीं होने के कारण से खरिदारी के बाद भोजन करते और सो जाते थे. दूकानदार उनके विश्राम की व्यवस्था यह सोचकर कर देते थे कि ग्राहक भगवान के समान है. उसे सुविधा नहीं दी तो आना बंद कर देगा. दूकानदार भी दुकान बंद कर आराम फरमाते थे. तभी से यह आदत चली आ रही है. राजकोट में दवा की दूकान या इक्का-दुक्का होटल छोड़कर सारी दूकाने बद कर दी जाती है. ऐसा लगता है जैसे दोपहर में कर्फ्यू आर्डर लग गया है. सड़कें सूनी हो जाती हैं.’’

    हमने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो राजकोट वासियों को बताइए कि कुंभकर्ण के समान सोए रहना अच्छी बात नहीं है. 14 वर्ष के वनवास में राम-रीता की रखवाली करनेवाले लक्ष्मण ने पलक तक नहीं झपकाई थी. वहां के लोगों को गीत सुनाइए- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है, जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘वे लोग नहीं सुधरनेवाले. उनकी जीवन शैली है- पहले भोजन फिर विश्राम सबके बाद शालिग्राम!’